सौ बातें सुनीं तुमसे, सौ बातों की एक कहानी,
उन बातों में न मैं था, ना थी कोई सखी पूरानी,
फिर भी दिलचस्प रहीं हमारी कहानी जिसके सहारे
अब बितानी है यह खूबसूरत जिंदगानी।ना हैं अहम का कोई किरदार यहां,
हैं दूर उलझनों और परेशानियों से हम,
ना रही कोई इच्छा अधूरी,
ना कोई तमन्ना बाकी रही,
तुम बैठे रहो पास मेरे,
थामे हाथों में हाथ मेरे,
कि अब ना कोई शिकायत होगी,
ना तारों से कोई बगावत होगी।
तुम बैठे रहो पास मेरे,
थामे हाथों में हाथ मेरे। ❤️
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दर्पण - मेरे मन का
Poetry'दर्पण- मेरे मन का' यह किताब मेरी हिंदी में लिखी कविताओ के लिए हैं। इस किताब में मैं अपने मन की भावनाओं को शब्दों में पिरोने का एक छोटा सा प्रयास की हूँ। आशा है कि आप सभी को मेरी कविताओ को पढ़ कर अच्छा लगेगा। #1 माँ out of 13 Stories on...