भाग 1 : सुचि

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बाहर हो रही तेज बारिश के कारण खिड़की के बाहर लोन तक नहीं दिख रहा था। रह रह कर बिजली कड़क रही थी। इतनी मूसलाधार बारिश कई सालों बाद हो रही थी। ठंड  तो ऐसे जैसे शीत ऋतु अभी ही आ गई हो।

अचानक जोर के धमाके के साथ लोन के किनारे लगे  अशोक के पेड़ पर जैसे बिजली गिरी हो। कुछ पलों के लिये बाहर आँखें चुंधियाने वाला उजाला फैल गया। कुछ
पलों के बाद जैसे सारा उजाला सिमट कर अशोक के पेड़ केl नीचे पिंडाकार में एकत्रित हो गया। और एक ही क्षण में सब शांत हो गया और अशोक के पेड़ के नीचे एक खूबसूरत, लंबा-चौड़ा, गोरा, ती
Nखे नैन नक्श वाला युवक खड़ा था। जिसने काले  लंबे बालों को ऊँची पोनीटेल मे बांधा हुआ था। और उसने भूरे रंग का फर के कालर वाला लंबा कोट पहना हुआ था जिसके कंधो पर से केय लटक रहा था और छाती पर काली धातु का कवच था। पैंट के ऊपर घुटनों तक के बूट थे जो भूरे रंग के पट्टे उपर तक बंधे थे। हाथ मे चाबुक व कमर पे लट्ठ जैसी तलवार थी।

वो एकटक सुचि को देख रहा था। उसकी आँखों मे एक आकर्षण था। सुचि को एक खिंचाव सा महसूस हो रहा था वो खिड़की से बाहर निकलने को तैयार थी कि तभी, "सुचि!" माँ कमरे मे आते हुए चीखीं।
"दूसरी मंजिल से नीचे गिरा तो सर फट जायेगा, तेरा।" माँ पास आते हुए बोलीं।

सुचि ने माँ का चेहरा पकड़ कर खिड़की ओर घुमाते हुए कहा," वहाँ देखो कोई है।"
"कहाँ? कोई भी तो नहीं है।" माँ अचरज से बोलीं। सुचि ने पलट कर देखा तो अशोक के नीचे कोई नहीं था।
" पर अभी अभी वहाँ कोई था।"सुचि धीमे स्वर मे बोली, जैसे खुदको यकीन दिला रही हो।

"अब तुम्हे कालेज के लिये लेट नहीं हो रहा?" माँ ने प्यार से झिड़कते हुए पूछा।

बैग कंधे पर डाल, एक पंराठा हाथ मे उठा  माँ का माथा चूकते हुए बाहर भाग गई।

कालेज पहुँची ही थी कि  फिर बारिश होने लगी। क्लास मे टीचर मुख्य टॉपिक समझा रहे थे पर सुचि को तो बैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। वो टकटकी लगाये बस कौंधती बिजलियों को देख रही थी। मानो वो उसको कुछ कह रही हों।

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⏰ पिछला अद्यतन: Aug 19, 2023 ⏰

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