हम सोने की तैयारी कर रहे थे । नील अपने कमरे में चला गया और मैंने सारे खिड़की दरवाजे दोबारा जाँच लिए । मेरी पत्नी भी रसोई का सारा काम खत्म करके कमरे में आ गयी थी । मैंने कमरे की बत्ती बन्द कर दी और लेट गया । पत्नी थकी हुई थी इसलिए तुरंत सो गई मगर मुझे नींद नहीं आ रही थी । मैं यूँ ही छत की ओर देखते हुए कुछ सोच रहा था कि अचानक ऐसा लगा कि बालकोनी में कुछ आवाज हुई । मैं सतर्क होकर ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा । दोबारा कुछ आवाज हुई , ऐसा लग रहा था कि बालकोनी में कोई है । दो दिन पहले ही अखबार में पढ़ा था कि हमारी कालोनी के एक घर में कुछ लोग बालकोनी के रास्ते घुसकर लूट पाट कर गये । मुझे थोड़ी घबराहट होने लगी तो मैं आगे के कमरे में बालकोनी की तरफ वाली खिड़की के पास आ गया । कमरे में अंधेरा था इसलिए बाहर से अंदर देख पाना मुश्किल था लेकिन बालकोनी में हल्की रोशनी के कारण मैं बाहर थोड़ा थोड़ा देख पा रहा था । वो तीन लोग थे और आपस में धीरे धीरे बात कर रहे थे । मैंने ध्यान से सुनने की कोशिश की तो उनमें से एक की आवाज़ सुनाई दी वो दूसरे से कह रहा था , "क्या करें आवाज़ लगायें या यहीं छुपे रहें ?" दूसरा बोला , " जब तक अँधेरा है तब तक तो ठीक है लेकिन सुबह होते ही कुछ इंतजाम करना पड़ेगा, पर कैसे ये सोचो। " ये आवाजें सुनी हुई सी लग रही थीं, मैंने दिमाग पर थोड़ा जोर दिया तो आवाज़ पहचान गया फिर भी आश्वस्त होने के लिए मैंने धीरे से आवाज़ लगाई , "कौन है वहां ?" मेरी आवाज़ सुन कर तीनों ने एक दुसरे तो तरफ देखा। थोड़ी देर के बाद एक धीरे से घबराई आवाज में बोला , "सर में मोहित, मैकेनिकल थर्ड ईयर। "
मैं उसकी आवाज पहचान चुका था , ये मेरा स्टूडेंट मोहित था इसलिए इस बार मैं थोड़ा जोर से पुछा , "मोहित , इतनी रात में यहां क्या कर रहे हो ? तुम्हारे साथ और कौन है ? " मोहित उसी घबराहट भरी आवाज में बोला , " सर मेरे साथ बिपन और सुकृति भी हैं । हम एक मुसीबत में फंस गये हैं और हमें रात भर के लिए आसरा चाहिए । अगर आप हम पर भरोसा कर सकें तो हमें अंदर आ जाने दीजिए, हम आपको सारी बात बता देंगे । " मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ ? इतनी रात में इस तरह इन लोगों को घर के अंदर बुलाना क्या ठीक होगा? अगले पल मेरे दिल से आवाज आयी, " ये मेरे शिष्य हैं और शिष्य के लिए अध्यापक का स्थान माता पिता के बराबर होता है तो ऐसे में अगर शिष्य किसी परेशानी में है तो अध्यापक का कर्तव्य है कि उसका मार्ग दर्शन करे ।" इतना सोचते हुए मैंने अच्छे बुरे की परवाह किए बिना बालकोनी का दरवाजा खोल दिया, सामने मेरे तीनो स्टूडेंट्स डरे हुए से खड़े थे। मैंने उनको अंदर बुलाया और बैठने को बोला । मैंने उन्हें पानी पीने के लिए दिया जिससे वो थोड़ा सामान्य हो सकें। फिर मैंने पुछा , "अब बताओ क्या बात है और तुम लोग इतनी रात में यहाँ क्या रहे हो।" मोहित ने बताना शुरू किया , "सर , हमारे कॉलेज में कुछ गड़बड़ रही है। " मुझे उसकी बात समझ में नहीं आयी मैंने दोबारा पूछा , "ठीक तरह से बताओ बात क्या है ?" हम बहुत धीरे बात कर रहे थे जिससे कोई और ना सुन पाए।