तकलीफ़

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आज जब मेरी शादी की बात तय हुई तो मुझे खुद से ज्यादा उसके लिए तकलीफ़ हो रही थी | तीन साल पुरानी यादें आज फिर ताजा हो गयी थी | जब उसकी शादी की बात तय हुई थी, क्या हाल हुआ था मेरा ये सुनकर की वो किसी और से शादी करने जा रहा है| कितना कहा था मैंने उसे की अपने घर वालों से हमारे बारे में बात करे, पर उसे लगता था इतनी जल्दी क्या है? अभी हमारी उम्र ही क्या है? पर उसे क्या पता था उसके घर वाले उसकी शादी बिना उसकी मर्जी के तय कर देंगे| उसने बहुत कोशिश की घर वालों को मनाने की, पर सारी कोशिशें बेकार हुईं| उल्टा उसकी शादी और छः महीने पहले तय हो गयी| कहते हैं न "वक़्त से पहले और किस्मत से ज्यादा कुछ नहीं मिलता"| उस वक़्त क़िस्मत जैसी चीज पर पहली बार भरोसा हुआ था मुझे | वो वक़्त हमारा नहीं था| हर एक दिन ऐसे बीत रहा था जैसे उसके शादी नहीं मेरे मरने का वक़्त पास आ रहा हो| अपने घर वालों को जैसे उस वक़्त मैं भूल ही चुकी थी| कुछ था तो सिर्फ हम.... उन चार महीनों में हम ज्यादा से ज्यादा वक़्त साथ बिता रहें थें| अपनी बची हुई जिंदगी में उन यादों के सहारे अपने प्यार को हमेशा बरकरार रखना चाहते थे| उन दिनों में अपनी पूरी जिंदगी जी लेना चाहते थे| पर वक़्त कहां किसी के लिए रुकता है| उसकी शादी की तारीख़ नजदीक आ चुकी थी| अपने आपको संभालना मेरे लिए अब बहुत मुश्किल हो गया था| हर दिन रोते-रोते गुजरता था| उसकी जिंदगी में मेरा दखल न हो इसलिए उसकी शादी होते ही मैंने उसका शहर छोड़ दिया| पर उसके लिए मेरा प्यार कभी कम नहीं हुआ| मुझे पता है भले आज हम साथ नहीं हैं, पर हम आज भी एक दुसरे से बहुत प्यार करते हैं| वो अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुका है| अब मेरी बारी है, मुझे पता है मुझे भी बढ़ना होगा| पर मेरी शादी की बात सुनकर उसे कितनी तकलीफ़ पहुंचेगी ये सिर्फ मैं ही महसूस कर सकती हूँ|

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