पाँच सिक्के (1)

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मधुप भट्ट और उसके साथी शायद घड़ी देखना भूल गये थे या उनकी मदहोशी अमावस के अंधेरे जैसी बढ़ रही थी, सराय का मालिक उन्हें तीन बार टोक चुका था क्योंकि उनकी तेज़ आवाज़ से आसपास के लोगों को काफ़ी दिक्कत हो रही थी पर अब उन्हे कोई होश नहीं था। मधुप पुरानी दिल्ली का रहने वाला था और ऑफिस के काम से अपने दोस्तों के साथ किसी दूसरे शहर आया था।

रात बहुत हो चुकी थी और इसका अनुमान शहर की खामोशी से लगाया जा सकता था, मधुप का हाथ अचानक अपनी घड़ी पर गया, एक तोहफा, जो मधुप को उसकी बीवी शीतल ने दिया था। शीतल, एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी। इनके बीच ना लड़ाई झगड़े की खाई थी ना प्रेम का कोई पुल। मधुप कॉलेज के दिनों से ही कुसुम को चाहता था, पर वह कभी हिम्मत ना जुटा पाया अपने घर पर सच बताने की। शादी को तीन महीने हो गये पर अब तक एक भी रात ऐसी नहीं थी जो इनको करीब ला सके। इनकी दूरी इनसे ज़्यादा मधुप की अम्मी को परेशान करती थी। उन्हें कुछ दिनों से अपनी ढलती उम्र का एहसास होने लगा था और उन्होंने पोते की माँग रख दी। हर वक़्त बस एक ही बात, एक ही चर्चा। वह तो अपने पोते के लिए खिलौनें भी खरीद चुकी थी।

यह वो दौर था जब मुहब्बत सिर्फ़ लफ्ज़-ए-ज़बान बन कर रह गई थी, वह या तो कॉलेज की खाली कक्षाओं में सिमट कर रह जाती या किसी पुरानी इमारत के कोनो में दबी साँसें भरती थी और 'हनिमून', 'रोमॅन्स' जैसे शब्द सिर्फ़ अँग्रेज़ी फ़िल्मो में सुनाई पड़ते थे। शीतल जानती थी की मधुप अपने दोस्तों के साथ ऑफीस के काम का बहाना मार शराब पीने जाता है, अपनी माँ को खत में शिकायत भी करती थी पर शादी के बाद उसकी माँ बहुत बदल गई थी। खत में बेटी के लिए प्यार कम और ससुराल में रहने के फ़ॉर्मूले ज़्यादा होते थे।

मधुप ने बड़ी अदब से शराब को अपने होठों से लगाया और एक लंबी घूंट ली। उसके दोस्त अब भी किसी अभिनेता के अफेयर की चर्चा कर रहे थे जिसमें उसकी दिलचस्पी बिल्कुल भी नहीं थी। वह बस इस पल को जीना चाहता था, अपनी गुमसुम सी जिंदगी के बोझ को एक कोने मे फेंक, धीरे धीरे शराब के नशे में जिंदगी की वास्तविकता को धुंधला कर रहा था। अगर कुसुम के बाद कोई उसकी मुहब्बत का हक़दार है तो वो थी ये ठंडी शीतल शराब।

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