जबसे उसने कॉलेज जाने का रास्ता बदला है,
चाई भी फी़की सी लगती है उस सड़क की,
वैसे तो पसंद नहीं, पर पूरे बीस के गोलगप्पे खा लेता था
बस दिन के पाँच मिनट साथ खड़े होने को,
पौने चार साल से उस रास्ते में जो ख़ुशबू उसके बालों की थी
आज कोई महक नहीं ,
वैसे तो मेरा घर उसके चार किलोमीटर आगे था
पर वो दिन के सत्रह बेशकीमती मिनट, जहां वो आगे और मेैं पीछे
दील में आया भी था की घर बना लूँ सड़क किनारे,
पर कल पता चला है सड़क नही शहर बदला है
जबसे उसने कॉलेज जाने का रास्ता बदला है,
दिल बड़ी ज़ेहमत में है ।