#Hindi

29 7 14
                                    

तल्खी तेरी जुबां से चाहे जितने सितम ढा ले
ज़िद हमने भी है ठान ली, पीछे ना हटेंगे

लफ्जों के तीर मत चला, सब बेअसर से हैं
तेरी आंखों में अब भी दिखता, मेरा ही अक्स है

चल मानते हैं हम कभी भी हमसफर ना थे
फिर मुझको रुका देख कर, अब तू क्यूं रुका है

undoubtedlymine

20.01.2019

2019Where stories live. Discover now