' स्नेहा ! मेरी प्यारी बेटी !'तुम तो बिल्कुल मजे में होगी ! इस उम्मीद के साथ इस खत के जरिये तुम्हारी गलतफहमी दूर करने की कोशिश करता हूं .
तुमने तो बाप बेटी के रिश्ते की धज्जियां ही उड़ा दी थी . उस का घोर अपमान किया था . फिर भी आंसू में कलम भिगोकर तुम से सारी बातें कर के तुम्हारी आँखों के सामने फैला अंधकार दूर करने का नैक प्रयास कर रहा हूं .
मेरा तुम्हारे प्रति का लगाव निष्पाप था , दूध जैसा साफ था . उस का ढिंढोरा पीटना नहीं चाहता हूं . लगाव होना एक कुदरती बात हैं जो भगवान का कारोबार हैं उस मे अपनी एक भी नहीं चलती . यह एक एहसास की बात हैं . मुझे अफ़सोस हैं उस का एहसास करवाने में नाकाम साबित हुआ . और मुझे ढिंढोरा पीटने पर विवश कर दिया .
' स्नेहा क्यो रूठ गई ? '
तुमने तो मुझसे कुछ बताये बिना मुझसे मुंह फेर लिया था . मैं तुम से बात करने हकीकत जानने के लिये काफी उत्सुक हो रहा था , बेताब था . तुम्हारी नाराजगी जानना था जो मेरा हक भी बनता था और तुम्हारा कर्तव्य .
तुमने तो मेरी तरफ देखना भी छोड़ दिया था . इस बात से मैं काफी असमंजस महसूस कर रहा था . अपनी बात कैसे कहूं ? बड़ी समस्या थी . प्रत्यक्ष रूप से बात करना चाहता था लेकिन तुमने तो मुझे कोई भी मौका प्रदान नहीं किया . आखिरी विकल्प खत ही था जिस का मुझे सहारा लेना पड़ा हैं .
पत्रकारित्व क्षेत्र में मुझे हुए अनुभवों का मैंने ब्यौरा दिया था. मैं इस लाईन से बाहर निकलने के लिये पूरी कोशिश कर रहा हूं. लेकिन तुम्हारा साथ खो जायेगा
. इस डर से मैं कोई फैंसला नहीं कर पा रहा हूं. ""तुमने तो पलभर में मुझ से किनारा कर लिया.. पर मैं तुम्हे भूला नहीं पा रहा हूं. तुम्हारी छबि मेरे दिल में अंकित हो गईं हैं. तुम्हारे साथ हुई बातचीत के एक एक शब्द मेरे कानो में दस्तक दे रहे हैं.."
" तुम्हे याद हैं? मैंने एक बार ५० पैसे का सिक्का दो हथेलियों के बीच दबोचकर सवाल किया था. "