HINDI POEM- ख्वाहिश

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दिल में कुछ ख्वाहिश थी‌ अधूरी सी
मुकम्मल होगी क्या वो थोडि‌ सी
खुद से पूछूं मे यही सवाल हर बार
क्या आएगा मेरी ख्वाहिशों का ज़हाज

उरुगी संग उसके दो पंख  लिए
कुछ बिखरे से कुछ मेले से रंग लिए
किया कभी मुकम्मल होग ये खुयाब
किया पुरी होगी मेरी ख्वाहिशों की दास्तां

पंकखो में मेरे वो जान नही
हवा से बाते करती वो बात नही
छीन गया हे मुझसे मेरा घरोनदा
भरा था जो खुयाबो और खुसियो से थोडा।।

-Komal

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