धधकता वो चला जो ,
वो जो था ले चला वो ,
काल था भला वो ,
क्या हाल था वहां तो ,
धधकता वो चला जो,
वो जो था साथ ले चला वो...जीता था जहाँ वो ,
बचा क्या रखा था वहाँ तो ,
जितना जी सका उतना जिया वो ,
क्या याद था क्या किया वो ,
बस यूं ही सब छोड़ चला वो ,
जो कुछ कमाया वो छोड़ यही चला वो,
जो अंत था वही सत्य था ,
वजूद खुद में बस मिथ्य था,
महत्वपूर्ण ना कभी महत्वपूर्ण था,
वक़्त तो बस यो ही बेवक़्त था,
अंत तो बस उसका अन्तेयष्ट था,
अंत तो बस अन्त्येष्ट था.....
यो छोड़ सब चला वो,
जो था वो आखिर साथ ले चला वो,
धधकता वो चला जो.....
धधकता वो चला जो ।।~ दीपक शुक्ला