मजदूर हैं, पर मजबूर नहीँ

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यूँ ग्रह युद्ध सा छेड़ हमारे लिए क्यूँ बौखलाते हो,

अनपढ़ हैं, अनाड़ी हैं,

यही कह सब चिढ़ाते हो ।

जब हो जाए खड़ी कोई समस्या,

हर दुविधा में हमें बुलाते हो।।

कहते हो हम मोहताज हैं? क्या

माफ करना सरकार,

पर हमारे बिना आप एक पत्ता ना हिला पाते हो ।।

मजदूर हैं, पर मजबूर नहीँ...

एक लौ हाथों में ले करके,

चरमसीमा का पाठ पढ़ाते हो।

औऱ कर दो एक पुण्य काम,

बखान उसका तुम गीता की तरह सुनाते हो ।।

हम नहीँ हैं तुम जैसे,

माफ करना जनाब ।

पर हमारी बदौलत ही,

तुम घर बैठ भर पेट खाना खा पाते हो ।।

मजदूर हैं, पर मजबूर नहीँ...

यूँ डरपत गरपत करके जिंदगी हमें व्यतीत करनी नहीँ आती ।

काम छोटा हो या बड़ा,

ये सोच तुम्हारी तरह शर्म नहीँ आती।।

मौहताज नहीँ स्वावलंबी हैं हम,

देश की गंदगी साफ करने को,

तुम्हारी तरह यूँ आँख मुंदनी नहीँ आती।।

मजदूर हैं, पर मजबूर नहीँ...


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