अल्फ़ाज़ की रवानी

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अल्फ़ाज़ की रवानी













लेडी जिब्रान


No.8, 3rd Cross Street,CIT Colony,
Mylapore, Chennai, Tamil Nadu-600004
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ISBN: xxxxxxxxxxxxxxxx
Book: Poetry
First Edition Published by
Notion Press 2020
Copyright © Darshna Suraj
Book Formatting: Anjali Jha
Cover Design: Ravindra Singh Thakur
Price: Rs. /- 149





कवयित्री का परिचय

“ना चलने में है, ना ही ठहरने में; सुकून तो है बस वक़्त की रवानी में बहने में।” – लेडी जिब्रान

दर्शना पंडित, दर्शना सूरज या लेडी जिब्रान चाहे किसी भी नाम से पुकार लो, जवाब में मिलेगी कुछ शायराना पंक्तियाँ या यूँ कहें कि शब्दों का खिलवाड़।
ये अहमदाबाद में पैदा हुई, बड़ौदा में बचपन बिताया और मुंबई इनकी कर्मभूमि बनी।
वाणिज्य का शिक्षण पाया, व्यापार भी किया परंतु अस्तित्व की खोज इनको ले आई छोटे मासूम बच्चों के बीच, जब से लेकर आज तक ये शिक्षिका की ज़िम्मेदारी निभा रही है। ख़ासकर उन बच्चों को जो सिखने की विकलांगता से पीड़ित हैं।
अपनी निजी संस्था ‘जस्ट फ़न किड्स क्लब’ द्वारा ये बच्चों के सार्वांगिक विकास के लिए समर्पित है।

लिखने की प्रेरणा प्रेमचंद जी की कहानियाँ और गुलज़ार जी की रचनाएँ पढ़ने से एवं अपनी परिस्थितियों को शब्दों में ढालने की आदत से मिली। स्कूल में श्रीमती गॉयल मेम और कॉलेज में श्रीमती अनुराधा मेम की वजह से लेखन में विशेष रुचि उत्पन्न हुई।वैसे बचपन से ही ये किताबों के बीच बड़ी हुई क्योंकि इनके दादाजी श्री सी. एम. पंडित का प्रकाशन कार्यालय था जहां से कई पुस्तकें एवं पत्रिकाएं नियमित प्रकाशित होतीं थी।
इनके लेख, कहानियाँ , कविताएँ अलग अलग मासिक पत्रिका, पुस्तकों तथा अख़बार में प्रसिद्ध होती है।
ये लेखन के अलावा फ़ोटोग्राफ़ी में विशेष रूचि रखती हैं। इन्होंने भारत नाट्यम नृत्य की तालीम ली है।
शब्द इनके लिए साधना है और शब्दों द्वारा ये प्राणी मात्र के काम आना चाहती है।


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ईमेल: darshna.suraj@gmail.com






‘हम ज़िंदगी के सताए नहीं, ज़िंदगी के सिखाए हुए है,
हताश होकर हारे नहीं, हम जंग जीतकर आए हुए है।’


















ऋण स्वीकार

सबसे पहला ऋण मेरी माँ (स्व. श्रीमती विनोदा पंडित) का जिन्होंने इस क़ाबिल बनाया कि मैं एक इंसान कहला सकू।
‘पिता से ज़्यादा प्रेम न कोई करता है न छिपाता’
मेरे पिता श्री प्रवीणचंद्र पंडित, पिता तुल्य बड़े भाई श्री जय पंडित और डॉ विजयकुमार शिंदे हमेशा ही मेरी हिम्मत रहे हैं।
बचपन से लेकर स्नातकोत्तर तक के सारे शिक्षक व गुरूजन की मैं बहुत आभारी हूँ।
मेरे पति श्री सूरज जी जो मेरे मित्र ज़्यादा है, उनके साथ सहकार को विशेष सराहना चाहूँगी।
मेरी सहेली स्व कुंजल छाया जिनकी वजह से मैंने नियमित लिखना आरंभ किया, उनका में ऋण स्वीकार करती हूँ।
मैं शुक्रगुज़ार हूँ रोनक भाई और कौशिक भाई, रवि, सीमा, अंजली और हर्षा की जिनके प्रोत्साहन के कारण ही यह किताब अस्तित्व में आई है।
मेरे प्यारे वाचक जिन्होंने मासिक पत्रिका, अख़बार, एवं अन्य पुस्तकों द्वारा मेरा उत्साह बढ़ाया है उनको नमन।
“क्या करे उन सितारों का जो शानों पर लगे, गर उन्हें चमकाने वाले कोई दोस्त न हो?”
मेरे सारी सखियों की मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
और आख़िर में शुक्रिया उन सभी का जिनका नाम यहाँ शामिल नहीं परंतु जिनका क़र्ज़ सदा ही रहेगा।

"कौन आगाज़ से अंजाम तक साथ देता है?
उसका उतना शुक्रिया जो जहाँ तक साथ देता है।" - लेडी जिब्रान

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⏰ पिछला अद्यतन: Oct 22, 2020 ⏰

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