इस उपन्यास की कहानी सच्चाई के बहुत नज़दीक है। व्यक्ति का अकेलापन उसके सोच में होता है। इंसानों के भीड़ के बीच भी लोग अकेलापन महसूस करते हैं। कुछ अकेले होकर भी अकेले नहीं होते। अपने अन्दर के खालीपन को भरने के लिए खुद प्रयास करते हैं और उबर जाते हैं। सच कहा गया है व्यस्त रहो मस्त रहो।