कण्ठ: प्रिय;
नुकिले उन तृणों को चिरकर
आरक्त चरण चिन्ह छोड़ गए,
घनी वसन्त की निविड़ छाॅव पर
आख़री सजीव पत्ती झर गए।समय ने तो बस मृदंग बजाया
शावन के घने बादल घिर आए,
बिन केका के बरसात हुआ
मेरे नैना ने भी नीरधार बहाए।दरार आई थी उन काजलों में भी
अलकों तले उन पलकों पर
खो गयी थी वह सुरीली नगमें
और हाथ पर रखी तुम्हारी कर।प्रात: की उस शरद शिशिर सी
ओष्ठ-अधर तुम्हारी रिक्त रही होगी
बस बिखर गया है आज वो
सम्पर्क बंधा माला की मोती।झन् से तोड़ी गई रिश्ता हमारा
व्याकुल लौटी काया की छाया
थम् सा गया मेरा काव्य गाथा
जब से तुमने मुड़कर न देखा।बह चले वह हसीन सपने
परी कथा से भी बेहतर रातें
भावना मेरी मानो पुष्पों की लहरें
खिलते, झड़ते, पुन: उग जाते।शब्द सौंप दिए मैंने अपने
कवि की प्रिया उस कवयित्री को
बांट दिया मैंने खुशियों को उस
नीली, चन्द्रमुक्त, घनी रात को।हरित, छत्रधारी, शाॅऺवली अरण्य में
बसा लिया निज तन-मन, सुख
पर मानता नहीं व्यथित हृदय
गरज उठता बीता हुआ दुख।उसकी कपोलों की स्निग्घ लाली में
चाहता हूं, खुद को पुनः रंग लूं।
पर आंधी जैसा उभर उठता क्रोध क्योंकि
मेरी प्रिया छायावादी हैं, मैं अमोघ विद्रोही हूं।।॥✿✿✿✿✿॥
कण्ठ: प्रिया;
कुश हो गए चिर ऋणी मेरे
जिनपर गुज़रे थे यह चपल चरण
शायद न लौट पाऊंगी मैं कभी
विरहिनी फिरूंगी मैं आमरण।समय के उस मृदंग लय पर
करूण सारंगी ने तान रचा था,
चित्त के मेरे चितवन चिरकर
बस आकुल आहट ही गुंजित था।अश्रु के उस मल्लार राग से
गंभीर गरजे थे श्रावन जलद
सुहावन समीरन एवं दमकती दामिनी
मिटा दिए थे सारे स्वप्न सुखद।देख निविड़ निशि निशाचरी मैं
बन गई उन प्रहरों को चाहने वाली
छायावादी खोई उस छाया के गम में
जिस छाया में थी विद्रोह की लाली।आत्म नहीं आत्मा हुई मैं
ज्यों ही तुम मुझे छोड़ गए—
प्रेमी हृदय मेरी पाषाण बना
रति रति-रति में टुट बिखरे ।झर-झर निर्झर सा सुख बहते
टिम-टिम सी जलती मेरी प्रेम तारा
उर्वर थे, पर अविन्यस्त थे
उठती जागती मेरी चिन्ताधारा।शब्द लिए न मैंने उस कवयित्री से
मौन हो गई वह अनुराग गाथा
प्रेमदीपक की शेष अनल में
भस्म कर रही मेरी अन्तर व्यथा।वृक्ष वल्कल और विह्वल भावना
यही बन गई मेरी क्षितिज सारा
निद्राविहीन मेरी श्रान्त काया
गिनते हीं रह गए रात की तारा।उसके करों की तप्त स्पर्श से
चाहती हूं, खुद को पुनः सिंच लूं।
पर मेघ सा उदित होता अभिमान क्योंकि
तुम प्रिय विद्रोही हो, मैं तो छायावादी ही हूं।।॥✿✿✿✿✿॥
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श्रृंगार राग
Poésieश्रृंगार राग : The feelings of love, the emotions of love, and, the expression of love. Presenting the hidden tale of two lover, one male (प्रिय) and another female (प्रिया) in their own perspective. तनिक मिलते, तनिक बिछड़ते, विरह की लाली में, दो...