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यज्ञ की ताप से जन्मी,
पांचाल के राज परिवार में एक कन्या |
नाम पाया उसने यज्ञसेनी,
आर्यावर्त के हर जिह्वा पर थी उसकी व्याख्या | |
न ही उसने बचपन देखा,
न ही महसूस किया बचपना |
युवती बन पधारी थी वो,
नाम पाया उसने नित्यायुवना | |
हर स्त्री की चाह होती है ,
एक मन वांछित वर पाने की |
मगर द्रौपदी बनी पंचामि ,
लक्ष्य बनी वो समाज के धिक्कार की ||
क्यों लोभ और काम के हैवान ने
उस मासूम को चुना था ?
क्यों पीड़ा की उन में
पांचाली को बुना था ?
वैसे तो उस श्रापित कुरु दरबार में
न्याय तो कभी न हुआ था, मगर फिर भी ,क्या दोष था परशती का
जो उस द्युत सभा में उसका चीर हरण हुआ था ||
भाग्य में जिसके होना चाहिए था राज सुख
उसे तेरह वर्ष का वनवास मिला |
इंद्राणी शचि की रूप कृष्णा को ,
क्या क्या नहीं भोगना पड़ा ||
साम्राज्ञी बनने की हकदार थी वो ,
मगर बन पड़ी एक दासी |
मत्स्य राज की महारानी के लिए ,बन बैठी वो सैरंध्री ||
मगर यहाँ भी पुरुष प्रधान समाज की ,
रीतियों ने साथ न छोड़ा |
जब सुदेष्णा के भाई कीचक ने ,
सैरंध्री की तरफ ध्यान मोड़ा ||
मगर उस पर नज़र टिककर,
कीचक ने की बहुत बड़ी भूल |
पांडवो के हाथों मृत्यु पाकर,
वह बन गया मात्र सिर्फ धूल ||
इतना सब होने के बाद भी,
नहीं झुकाया महाभारती ने अपन सिर |
अभिमान अगर झुक गया,
तो वह आदमी तो हो गया मृत ||
न जाने क्यों, हम द्रौपदी को
महाभारत का हकदार मानते है |
क्यों यज्ञसेनी पांचाली को,
कुरुवंश का काल मानते है ||
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ᴛʜᴇ ᴀʀᴛ ᴏғ ᴇᴍᴏᴛɪᴏɴs
Thơ ca◢✥◣ 𝐀 𝐬𝐦𝐚𝐥𝐥 𝐜𝐨𝐥𝐥𝐞𝐜𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐨𝐟 𝐩𝐨𝐞𝐭𝐫𝐢𝐞𝐬 𝐭𝐡𝐚𝐭 𝐦𝐚𝐲 𝐨𝐫 𝐦𝐚𝐲 𝐧𝐨𝐭 𝐡𝐚𝐯𝐞 𝐛𝐞𝐞𝐧 𝐢𝐧𝐬𝐩𝐢𝐫𝐞𝐝 𝐛𝐲 𝐦𝐲 𝐝𝐚𝐢𝐥𝐲 𝐥𝐢𝐟𝐞. ◥✥◤