सच

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यादों के सहारे क्या जिया जाता है,
सपनों के बिना क्या हकीकत सहा जाता है?
जब पता चले की खोखले थे सारे ख्वाब,
तब दर्द को कैसे सहा जाता है!

जब कुछ सच्चा न था,
तो ढोंग रचाना जरूरी था क्या?
पल भर की खुशियों के लिए,
जिंदगी भर का दर्द देना मुलाजिम था क्या?

प्यार भी गुलामी होती है,
यह पता न था?
प्यार में भी नफरत समाई होती है
पता न था!

साथ रहना जरूरी तो नहीं,
जबरदस्ती का रिश्ता जरूरी तो नहीं।
हम अकेले ही ठीक है जनाब,
बार बार दर्द सहना जरूरी तो नहीं।

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