यादों की अलमारी

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अभी ही तो मिले थे , जाना जरुरी था क्या?
कुछ पल साथ चल कर यूं बिछड़ना जरुरी था क्या?
कैसे बताऊं की चाह थी, कुछ पल साथ में और गुजार लूं,
या में जज्बाती हूं यह बता दूं?

यादों की अलमारी, खुशियों से भरी है,
अब भी लगता हैं की हम उसी पल में ही हैं।
नही जानती की वो कैसा संजोग था,
जिसने मुझे तुमसे मिलाया था।।

मन करता है की उस पल को और एक बार जी लूं,
संग तुम्हे भी ले चलूं।
अब शामें उतनी हसीन हसीन नहीं होती,
रोज अब मुलाकात नहीं होती।।

कास कोई वापस दिलादे मेरे खुशियों वाले दिन,
संग तुम्हे भी ले चले वहां किसी दिन।
मिलेंगे फिर हम किसी हसीन मोड़ पे,
तब संग बुलाओगे न उस दिन??

©आकांक्षा

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