जो हुआ सो हुआ!

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देखा जाये तो,
सारी उम्र काटदी मुहब्बत करते, जताते मैने,
और शायद ही कोई,
कभी मेरा हुआ!

माना, मैने ही की गलतिया कई मरतबा,
मुझे है मालूम,
मगर इतना बुरा हूँ क्या?
कि मुझे खोकर उसे पछतावा भी ना हुआ?

मुझमे ज़िंदा है यादें उसकी,
मैंने कोशिश भी ना की उन्हें भुलाने की,
मगर क्या करूँगा यादों का,
जब इश्क मुकम्मल ही ना हुआ?

उससे पूछने है कई सवाल,
और मैं भूल भी गया हूँ कई बातें,
मगर जवाब में खामोशी?
आख़िर ये कैसा जवाब हुआ?

मुझे मिलाओ कभी उसकी मुहब्बत से,
मैं देखु लकीरे उसके हाथो की,
आख़िर वो किसकी हुई?
मेरे बाद कौन उसका हुआ?

तुम पढ़ रहे हो लिखा मेरा,
मैं जाने अंजाने दर्द बांट रहा हूँ,
तुम भी सोच रहें होगे,
मेरे साथ आख़िर कितना बुरा हुआ?

मगर मैं हूँ हमेशा से हताश,
ना ख्वाहिशें हैं ना ख्वाब,
एक टूटे काँच को तोड़ा उसने,
आख़िर इसमें क्या कमाल हुआ?

उसे गिला नहीं मेरी बर्बादी का?
ना उसे ख्याल ही है मेरा, और क्यूँ हो?
मैं पहले से हूँ एसा? 
मैं कौनसा आज बरबाद हुआ!

मुहब्बत एक जंग है,
कितनों को तबाह किया है इसने,
तोह इस जंग में यारों आज,
मैं भी कुर्बान हुआ!

मुझे खुदा ने ख्वाब में कहा,
कि ये आखिरी रात हो मेरी,
खुदा का श्राप,
मेरा तो वरदान हुआ!

उसका मिलना, पसंद आना, तबाह करना,
सब लिखा था मेरी लकीरों में?
मगर वो ही क्यूँ?
आख़िर ये कैसा इत्तेफ़ाक हुआ?

अजीब फ़ितरत है यादों की भी,
जो चाहा याद रखना भूल गये,
जो भुलाना चाहा,
वो उतना ही याद हुआ!

मगर खैर छोड़ो,
जो हुआ, सो हुआ!
कैसे हुआ? क्यू हुआ? क्या सोचना!
जो हुआ, सो हुआ!


                                           ~trippy

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