अधूरा चाँद!

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चाँद अधूरा देख, फरियाद तो करती होगी?

माना ज्यादा नहीं करती, पर याद तो करती होगी?

दिन भर बितालेती  होगी, ग़ैरो की महफ़िल में,

रात के कुछ पल मेरी याद में, बरबाद तो करती होगी?

ना सोचो कि जाग रहा हूँ, रातों में अकेला,

मेरी हिचकिया गवाह है, वो भी जागती होगी,

मैं नहीं बांटता दर्द, चीख  लेता हूं पन्ने पर,

वो भी किसी को हमदर्द मान दर्द बांटती होगी,

टूटे कांच को तोड़ेगी,  ना थी उम्मीद मुझको,

ना था मुझे अंदाज़ा, के इतनी बेरहम होगी,

मुझे देख बदल लेती है, रास्ता जो अपना,

शायद मेरी सूरत भी अब, तक़लीफ़ पहुँचाती होगी,

पूछते होंगे जब उसके हमदर्द, वजह फूलों के मुरझाने की,

अपनी गलतियाँ छुपा मुझपे इल्ज़ाम  लगाती होगी,

एक वादा किया था उसने, जो निभा रही है आज भी,

मुझे लगा था सारे वादे वो, ऐसी ही निभाती होगी,


~कुशाग्र 

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