गलती मेरी थी।

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तुम्हारी मुस्कान बहुत पसंद थी इन आँखें को, लेकिन तुम वो कभी देख ही ना पाए,

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तुम्हारी मुस्कान बहुत पसंद थी इन आँखें को, लेकिन तुम वो कभी देख ही ना पाए,

तुम्हें देखने कि ख्वाइश थी इस दिल की, पर तुम वो कभी समझ ही ना पाए,

तुम्हारी आवाज सुनने के लिए तरस गए थे ये कान, पर हम आपस में कभी बोल ही ना पाए,

तुम्हारे बारे में सोचकर ही बढ़ जाती थी इस दिल की अनगिनत धड़कने, पर तुम वो कभी सुन ही ना पाए,
क्या तुम्हे भी लगता था ऐसा?

अगर हां, तो कभी जताया क्यूं नही?
ख़ैर पता भी कैसे चलता,

गलती मेरी थी,
मैंने कभी बताया क्यूं नही?।

Grey and Green, from afar Where stories live. Discover now