Part 3

6.8K 18 0
                                    




कभी कभी कामिनी को ऐसा लगता मानो लिंग उसके हलक से भी आगे जा रहा है। अशोक को बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था। उसने अपने धक्के तेज़ कर दिए और मानो भूल गया कि वह कामिनी के मुँह से मैथुन कर रहा है।
कामिनी को लिंग के बड़ी साइज़ से थोड़ी तकलीफ तो हो रही थी पर उसने कुछ नहीं कहा और अपना मुँह जितना ज्यादा खोल सकती थी खोल कर अशोक के आनंद में आनंद लेने लगी। अशोक अब दूसरी बार शिखर पर पहुँचने वाला हो रहा था।
उसने कामिनी के सिर को पीछे से पकड़ लिया और जोर जोर से उसके मुँह को चोदने लगा। जब उसके लावे का उफान आने लगा उसने अपना लिंग बाहर निकालने की कोशिश की पर कामिनी ने उसे ऐसा नहीं करने दिया और दोनों हाथों से अशोक के चूतड पकड़ कर उसका लिंग अपने मुँह में जितना अन्दर कर सकती थी, कर लिया।
अशोक इसके लिए तैयार नहीं था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह किसी लड़की के मुँह में अपने लावे का फव्वारा छोड़ पायेगा। इस ख़ुशी से मानो उसका लंड डेढ़ गुना और बड़ा हो गया और उसका क्लाइमेक्स एक भूकंप के बराबर आया।
कामिनी का मुँह मक्खन से भर गया पर उसने बाहर नहीं आने दिया और पूरा पी गई। अशोक ने अपना लिंग कामिनी के मुँह से बाहर निकाला और झुक कर उसे ऊपर उठाया। कामिनी को कस कर आलिंगन में भर कर उसने उसका जोरदार चुम्बन लिया जिसमे कृतज्ञता भरी हुई थी।
कामिनी के मुँह से उसके लावे की अजीब सी महक आ रही थी। दोनों ने देर तक एक दूसरे के मुँह में अपनी जीभ से गहराई से खोजबीन की और फिर थक कर लेट गए। अशोक कई सालों से एक समय में दो बार स्खलित नहीं हुआ था। उसका लिंग दोबारा खड़ा ही नहीं होता था। उसे बहुत अच्छा लग रहा था।
दिन के डेढ़ बज रहे थे। दोनों को घर जाने की जल्दी नहीं थी क्योंकि ऑफिस शाम ५ बजे तक का था और वैसे भी उन्हें ऑफिस में देर हो ही जाती थी। आमतौर पर वे ६-७ बजे ही निकल पाते थे। दोनों एक दूसरे की बाहों में लेट गए और न जाने कब सो गए।
करीब एक घंटा सोने के बाद अशोक की आँख खुली तो उसने देखा कामिनी दोनों के टिफिन खोल कर खाना टेबल पर लगा रही थी। उसने अपने को तौलिये से ढक रखा था। अशोक ने अपने ऑफिस की अलमारी से रम की बोतल और फ्रीज से कोक की बोतलें निकालीं और दोनों के लिए रम-कोक का ग्लास बनाया।
कामिनी ने कभी शराब नहीं पी थी पर अशोक के आग्रह पर उसने ले ली। पहला घूँट उसे कड़वा लगा पर फिर आदत हो गई। दोनों ने रम पी और घर से लाया खाना खाया। खाने के बाद दोनों फिर लेट गए। अशोक को अचानक ध्यान आया कि अब तक उसने कामिनी को ठीक से छुआ तक नहीं है।
सारी पहल कामिनी ने ही की थी। उसने करवट बदलकर कामिनी की तरफ रुख़ किया और उसके सिर को सहलाने लगा। कामिनी ने तौलिया लपेटा हुआ था। अशोक ने तौलिये को हटाने के लिए कामिनी को करवट दिला दी जिस से अब वह उल्टी लेटी हुई थी।
अशोक ने उसके हाथ दोनों ओर फैला दिए और उसकी टांगें थोड़ी खोल दीं। अब अशोक उसकी पीठ के दोनों तरफ टांगें कर के घुटनों के बल बैठ गया और पहली बार उसने कामिनी के शरीर को छुआ। उसके लिए किसी पराई स्त्री को छूने का यह पहला अनुभव था। कुछ पाप बड़ा आनंद देते हैं।
उसके हाथ कामिनी के पूरे शरीर पर फिरने लगे। कामिनी का स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था और उसकी पीठ और चूतड़ का दृश्य उसमें जोश पैदा कर रहा था। अशोक कामिनी के शरीर को देख कर और छू कर बहुत खुश था। उसे उसके पति पर रश्क भी हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था कि ऐसी सुन्दर पत्नी को प्यार नहीं करता था।
अशोक ने कामिनी के कन्धों और गर्दन को मलना और उनकी मालिश करना शुरू किया। कहीं कहीं गाठें थी तो उन्हें मसल कर निकालने लगा। जब हाथ सूखे लगने लगे तो बाथरूम से तेल ले आया और तेल से मालिश करने लगा। जब कंधे हो गए तो वह थोड़ा पीछे खिसक गया और पीठ पर मालिश करने लगा।
जब वह मालिश के लिए ऊपर नीचे होता तो उसका लंड कामिनी की गांड से हलके से छू जाता। कामिनी को यह स्पर्श गुदगुदाता और वह सिहर उठती और अशोक को उत्तेजना होने लगती। थोड़ी देर बाद अशोक और नीचे खिसक गया जिस से लंड और गांड का संपर्क तो टूट गया पर अब अशोक के हाथ उसकी गांड की मालिश करने लगे।

उसने दोनों चूतडों को अच्छे से तेल लगाकर मसला और मसाज करने लगा। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। कामिनी भी आनंद ले रही थी। उसे किसी ने पहले ऐसे नहीं किया था। अशोक के मर्दाने हाथों का दबाव उसे अच्छा लग रहा था। अशोक अब उसकी जाँघों तक पहुँच गया था।

अशोक की उंगलियाँ उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से को टटोलने लगी। कामिनी ने अपनी टांगें थोड़ी और खोल दीं और ख़ुशी से मंद मंद करहाने लगी। अशोक ने हल्के से एक दो बार उसकी योनि को छू भर दिया और फिर उसके घुटनों और पिंडलियों को मसाज करने लगा।
कामिनी चाहती थी कि अशोक योनि से हाथ न हटाये पर कसमसा कर रह गई। अशोक भी उसे जानबूझ कर छेड़ रहा था। वह उसे अच्छी तरह उत्तेजित करना चाहता था। थोड़ी देर बाद कामिनी के पांव अपने गोदी में रख कर सहलाने लगा तो कामिनी एकदम उठ गई और अपने पांव सिकोड़ लिए।

वह नहीं चाहती थी कि अशोक उसके पांव दबाये। पर अशोक ने उसे फिर से लिटा दिया और दोनों पांव के तलवों की अच्छी तरह से मालिश कर दी। कामिनी को बहुत आराम मिल रहा था और न जाने कितने वर्षों की थकावट दूर हो रही थी। अब कामिनी कृतज्ञता महसूस कर रही थी।

अशोक ने कामिनी को सीधा होने को कहा और वह एक आज्ञाकारी दासी की तरह उलट कर सीधी हो गई। अशोक ने पहली बार ध्यान से कामिनी के नंगे शरीर को सामने से देखा। जो उसने देखा उसे बहुत अच्छा लगा। उसके स्तन छोटे पर बहुत गठीले और गोलनुमा थे जिस से वह एक कमसिन लगती थी।

कामसुख(Completed)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें