सुबह के 6 बज रहे थे। जसमीन अपने कमरे में गहरी नींद में सोई हुई थी। उसके ऊपर सिर्फ एक पतली चादर थी, जिसके बाहर उसके गोरे-गोरे पैर निकले हुए थे। रात को क्लब में उसने थोड़ी ज्यादा पी ली थी, जिसका असर अब भी उसके सर पर था।
उसकी माँ, पार्वती चौहान, दरवाज़ा खोलकर अंदर आई। जसमीन को सोते देख, उसने उसे आवाज़ देकर उठाना शुरू किया।
"जसमीन, जसमीन! चलो उठो, कॉलेज जाना है।"
जसमीन ने आधी आँखें खोलकर अपना सिर थोड़ा ऊपर किया और पार्वती की तरफ देखा। फिर उसकी नज़र पास रखे मोबाइल स्क्रीन पर गई। 6 बजकर 5 मिनट हुए थे।
"Ugh, Mumma, it's too early," जसमीन ने कराहते हुए कहा।
"Early? It's almost time for your class!" पार्वती ने जवाब दिया।
जसमीन ने चादर को अपने आप से लपेटकर बेड से बाहर कदम रखा।
"Five more minutes, please?" उसने मिन्नत भरी आवाज़ में कहा।
तैयार होकर जसमीन हॉल में आई। डाइनिंग टेबल पर उसके पापा, ऋषि चौहान, अखबार पढ़ रहे थे। जसमीन ने उन्हें देखकर कहा, "Good morning, Papa."
ऋषि ने भी हँसते हुए कहा, "Morning, darling."
पार्वती ने जसमीन की तरफ देखते हुए कहा, "तुम्हारा ऐसे देर से घर आना मुझे पसंद नहीं। और क्या पता कब तुम्हारा सामना शिकारी से हो जाए।"
शिकारी का नाम सुनते ही जसमीन थोड़ी डर गई। उसके चेहरे पर एक घबराहट छा गई।
ऋषि ने पार्वती को समझाते हुए कहा, "कुछ नहीं होगा। अब हम पहले जैसे शैतान नहीं रहे। हम इंसान बन चुके हैं।"
जसमीन ने उनकी ओर देखा और थोड़ी मुस्कुराई। ऋषि सिर्फ अपनी बेटी को थोड़ी हिम्मत दे रहे थे, लेकिन वो जानते थे कि उनका सामना अगर शिकारी से हुआ तो फिर से उन्हें एक जंग लड़नी पड़ेगी।
उनके मन में एक अनजाना डर था, लेकिन उन्होंने अपने चेहरे पर इसे ज़ाहिर नहीं होने दिया।
जसमीन के कॉलेज जाने के बाद, ऋषि ने पार्वती से कहा, "तुम उसके सामने शिकारी का ज़िक्र मत किया करो। तुम जानती हो वो अभी तैयार नहीं है और मैं उसे तैयार करना भी नहीं चाहता था।"
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शैतान
Terrorयह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। यदि कोई समानता पाई जाती है तो वह मात्र एक संयोग होगा।