अध्याय - 1

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आसमान साफ था, चाँद पूरा खिला हुआ था और वह दूसरे सितारों से बातचीत कर रही थीं। तभी एक तारा टूटकर धरती की ओर बढ़ने लगा और नीचे आकर लंका के समुद्र तट पर उतर गया। उस समय रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। दूर तक सन्नाटा था, सिर्फ लहरों की आवाजे आ रही थी। समुद्र से एक ठंडी हवा का झोंका आयी और समुद्र तट पर उतरी। वहाँ बहुत सारे नारियल के पेड़ और कुछ घर थे। ऐसा लग रहा था मानों किसी ने नीले चित्र फलक पर काले रंग से चित्र बना दिया हो। वह अपने शरीर को झकझोरती है और पानी को चारों ओर फैलाती है। उससे कहा गया है कि उसे किसी को किसी के यहां पहुंचाना है। वह चारों ओर देखती है। जब उसे कोई नजर नहीं आयी तो वह अपने चारों ओर घूमती है और उसके साथ एक अंगूठे जैसी चीज भी घूमती है जिसके दो छोटे पंख होते हैं। उसने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने छोटे हाथ हिलाए। वह अपने कंधे पर एक छोटा सा बस्ता लिए थी। झोंका उसे पहचानती थी। वह एक स्वप्न वाहक थी। दोनों काफी समय के बाद मिल रहे थे।

हवा का झोंका बोली,, 'और बताओ मित्र, कैसी हो तुम?'

नन्हे स्वप्न वाहक बोली,, 'धन्यवाद मैं ठीक हूँ, तुम कैसी हो?'

वह बोली, 'धन्यवाद मैं भी ठीक हूँ। खैर, हमें मिले हुए काफी अरसा बीत चुका है, इस बार क्या है?'

नन्हे स्वप्न वाहक ने कहा,, 'मुझे रावण के महल में जाना है। क्या आप कृपया मेरी सहायता करेंगी?'

वह बोली, 'बेशक करूंगी, यह मेरे लिए खुशी की बात होगी, लेकिन रावण का महल यहां से बहुत दूर पहाड़ पर है।'

नन्हे स्वप्न वाहक बोली, 'ठीक है, चलो हम सीधे रावण के महल चलते हैं।'

वह बोली, 'क्या तुम्हें जल्दी है?'

नन्हे स्वप्न वाहक बोली, 'नहीं, लेकिन रात का तीसरा पहर ख़त्म होने से पहले कृपया मुझे वहाँ पहुँचा देना।'

वह बोली, 'वहां जाने के दो रास्ते हैं, हम पहाड़ों के बीच से गुजरेंगे, बहुत मजा आएगा, तुम भी क्या याद करोगी, मेरे साथ रहना।'

एक था रावणजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें