अध्याय - 6

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देखते ही देखते दो साल बीत गए। उस दौरान इंद्रजितने जहाज के हर हिस्से में काम किया। उसे हर नई चीज सीखने में दिलचस्पी थी। इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था। पहले उसे ऊंचाई से डर लगता था। बाद में जहाज का ऊँचा मस्तूल उसे आकर्षित करने लगा। उसने तूफान में ऊंची लहरें देखी जो जहाज के साथ ऐसे खेलता था जैसे वह कोई खिलौना हो। एक बार विशाल लहरों ने जहाज को इतना ऊपर उठा दिया था की हर कोई अपने आखिरी पल का इंतजार करने लगा। मगर वह बिना किसी डर के कुदरत का करिश्मा देखता रहा।

रसोई में काम करते हुए उसकी जीभ खाने के स्वाद को करीब से समझने लगी। जब मौसम अच्छा होता और हवा तेज होती तो वह समुद्र में कूद जाता और जहाज के साथ दौड़ लगाता ऐसा करने से जहाज पर मौजूद लोग दो ग्रुप में बंट जाते थे और उस पर दांव लगा देते थे। वह पहले से ही बलवान, फुर्तीला और निडर था। उसमें और निखार आ गया। वह कप्तान का लाडला बन गया। उसने दो साल से किसी हथियार को छुआ तक नहीं था। उसे सामान्य जीवन अच्छा लगने लगा। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था।

एक दिन सुबह जहाज तूफान में फंस गया। उस पर बिजली गिरी और उसका पिछला मस्तूल टूट गया। नीचे गिरते हुए उसने जहाज के पिछले हिस्से को भारी क्षति पहुँचाई। जहाज पीछे की ओर झुक गया और उसमें पानी भरने लगा। जहाज पर अफरा-तफरी मच गई और लोग रोने, चिल्लाने लगे। इंद्रजीत ने देखा कि जहाज का कप्तान शांत था और जहाज को बचाने की कोशिश कर रहा था। उसकी आंखों में मौत का कोई डर नहीं था, वह एक बहादुर सेनापति की तरह सबको निर्देश दे रहा था, जबकि उसे पता था कि जहाज डूबने वाली है। अंत में वह सभी को जहाज छोड़ने के लिए कहता है और खुद जहाज सहित समुन्दर में समाधि ले लेता हैजब इंद्रजीत ने उसे अंतिम बार देखा तो दिल से सलाम किया। वह एक हरफनमौला व्यक्ति थे, उनके पास हर समस्या का समाधान था।

जब इंद्रजीत की आंख खुली तो उसने खुद को किनारे पर पड़ा हुआ पाया। जब उसे विश्वास हो गया कि वह जीवित है तो वह जोर से चिल्लाने लगा। लेकिन उसकी आवाज उसके गले में ही सिमट कर रह गयी। उसके शरीर में ताकत नहीं थी और उसकी आंखें सूजी हुई थीं। उसने अपने गले में हाथ डाला और पाया कि भाग्यशाली कुंडा अभी भी उसके गले में है। वह वैसे ही पड़ा रहा। कुछ देर बाद उसे महसूस हुआ कि कोई उसके शरीर को हिला रहा है, उसके गाल पर थप्पड़ मार रहा है। एक गरुड़ आसमान में तब तक मंडराता रहा जब तक कोई उसे वहाँ से उठाकर ले नहीं गया।

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