इश्क़ होने से पहले

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आधी दोपहर हो गयी थी। मुमताज बाजी भी अब तक अपनी पिटारी में बन्द ख्यालों से बाहर आ चुकी थीं। उन्होंने वो सारे सामान जो पिटारी से निकाले थे, उन्हें वापिस रख कर उसे अपने सिरहाने रख दिया। बिस्तर की सलवटों को ठीक करके उन्होंने अपने संदूक को खोला। कुछ कपड़े, दो बाजूबंद, एक हँसुली के सिवा उसमें आखिर क्या था जो वो ढूँढ रही थीं? उन्होंने पूरा संदूक खाली कर दिया जब उन्हें कागज़ में लिपटी एक पोटली दिखाई दी। उसे देख कर वो हौले से मुकुरायीं। बाकि सारी चीज़ों को जैसे तैसे समेट संदूक के हवाले कर वो उस पोटली को नज़ाकत से खोलने लगीं। उनके चेहरे पर एक कमसिन की शर्म और लाली थी। झुर्रियों से भरा वो चेहरा कुछ ही पलों में खिलकर अपनी उम्र को धोखा देने लगा था।

उन्होंने आईने के सामने रख कर उसमें रखी डिब्बी को प्यार से देखा। आईने में उनकी आँखें जैसे खुद को नहीं किसी और की परछाइयों को ढूँढ रही थीं....

"देख तेरे लिए ये सुरमें की डिब्बी लाया हूँ। अब ना कहना कि आँखों में स्याह रंग नहीं सुहाता... मुझे तो तेरी आँखें इनके बिना सूनी सी लगती हैं......"

ये उसका पहला तोहफ़ा था, वो कैसे भूल जाती? आज फिर से उस स्याह रंग को अपनी आँखों में सजाना था भले ही वो उसे नम ही क्यों ना कर दे.....

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शाम ढल चुकी थी। बाज़ी चौखटे में बैठी अंजुमन का इंतजार कर रही थीं। रसोई में उन्होंने सेवइयां चढ़ा रखी थीं जिसकी खुशबू बाहर सेहन तक आ रही थी। उन्होंने सोचा कि अंजू के आने के बाद ही वो पूरियां बनायेंगी। उसे पूरियां बेहद पसंद थी। वो बड़े ही चाव से खाती। और फिर गोश्त पकाने का काम तो उसे ही करना था... वरना तो वो आकर साफ़ साफ़ कह देती.. 'गोश्त में स्वाद कम है। इसे मुझे पकाने दें...'

बाजी भी उसकी बातों को सुन सुन कर हँसती कि जाने कब और कैसे रसोई के काम उनकी नातिन के लिए इतने अजीज़ हो गए... अभी ज्यादा दिन नहीं बीते थे जब वो कहा करती थी कि 'नानी ये चूल्हे चौके का काम मुझसे नहीं होगा' । और जब वो पूछती कि शौहर के रोटी मांगने पर वो क्या करेगी तो वो धड़ से जवाब देती-"जिसे रोटी खानी हो वो खुद पकाना सीख ले। मुझसे मोहब्बत होगी तो मेरे से ऐसे काम क्यों करायेगा वो नाशुकरा?"

ख़त वो पुराने से (#wattys2016 winner)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें