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खामोश प्यार
(वो बचपन वाली लड़की)
लेखन :- दिवाना राज भारती।

ये कहानी सिफ्र मेरी ही नही उन सभी नौजवानों कि है जो किसी से बेइंतहा प्यार करते है। और उनके इंतजार मे आज भी आँखे टिकाये हुये है, की वो आयेगी, जरूर आयेगी, आना पड़ेगा उन्हें, क्योकि मै उन्हें प्यार करता हूँ। और बहुत प्यार करता हूँ, मुझसे ज्यादा कोई उन्हें प्यार नही कर सकता। लेकिन जिनसे वो इतना प्यार करते है उन्हें तो खबर ही नही कि कोई उन्हें बेइंतहा प्यार करता है। क्योकि उन्होेंने एक दुसरे को बताने कि हिम्मत ही नही की।

ये बात तब कि है जब हम ग्यारहवीं मे पढने के लिए दरभंगा(बिहार) आये थे। वहाँ मेरे बहुत सारे दोस्त बन गये थे। जब भी हम सब मिलते बातों का सिलसिला लम्बा चलता। एक दिन बातों ही बातों मे सब एक दुसरे से बिते जिंदगी के बारे मे पूछने लगे। जैसे तुम्हारी गर्लफ्रेंड का क्या नाम है। कहाँ मिलीं थी। कैसी है इत्यादि। सबने अपने बारे मे बताया, अब मेरी बारी थी। एक ने पूछा तेरी गर्लफ्रेंड का क्या नाम है। मैनें कहा माफ करना यार, मेरी न तो कोई गर्लफ्रेंड थी और न है, आगे का पता नही। दुसरे ने कहा, क्यो झुठ बोल रहे हो यार, एैसा हो ही नही सकता, इतने हैंडसम हो, किसी न किसी का दिल तो तेरे पे आया ही होगा। मैने कहां एैसा कुछ नही है यार, अगर एैसा कुछ हुआ होता तो हम जरूर बताते। एक ने फिर टोका यार कोई तो होगी, जो तुम्हे अच्छी लगती होगी, जिसकी स्माइल अच्छी लगती होगी। जिसके लिए तुम कुछ भी कर सकते हो।
बातों का सिलसिला अब खत्म हो गया था। सब अपने घर को चले गये। मै भी अपने घर चला आया। पता नही क्यो मेरा मन नही लग रहा था। कुछ करने को जी नही कर रहा था।
तो मै लेट गया। दोस्तों कि बात मेरे दिमागों मे घूम रही थी। मुझे किसी कि याद आने लगी थी। हाँ यार थी एक लड़की, जिसके लिए मै कुछ भी कर सकता था। मै उसकी स्माइल का दिवाना था। उसकी स्माइल थी ही ऐसी यार, जो एक बार देख ले, वो अपना सारा गम भुल जाए। एैसा लग रहा था जैसे मानो सारे दुनियाँ का गम, अपनी स्माइल मे समा लेगी वो।
मुझे आज भी वो दिन याद है, जब मैने उसे पहली बार देखा था। मै करीब छ: साल का था। मै अपनी पढाई के लिए एक प्राइवेट स्कूल मे दाखिला लिया था। इत्तेफाक से उस स्कूल का नाम रेड रोज पब्लिक स्कूल था। यानि लाल गुलाब पब्लिक स्कूल था। अब जिस स्कूल का नाम एैसा हो और वहाँ किसी को किसी से प्यार न हो कैसे हो सकता है।
स्कूल का पहला दिन, मन नही लग रहा था मै बोर हो रहा था। क्योकि हमारे लिए सब नये और अजनबी थे। ये जगह, यहाँ के बच्चे यहाँ के लोग। हमारे कोई दोस्त भी नही थे क्योकि हम किसी को जानते नही थे। मै अपनी क्लास मे आके बैठ गया था। शायद उस वक्त हम वन मे थे। कुछ देर बैठने के बाद घंटी की आवाज सुनाई दी। सब बच्चे बाहर आने लगे तो मै भी आ गया। शायद प्राथना का वक्त हो गया था। सभी बच्चे पंक्ति मे खडे हो गये और प्राथना शुरु हो गयी। सभी की आँखे बंद थी और हाथ जोड़े प्राथना मे लीन थे। लेकिन मै हाथ जोड़े आँख खोले इधर-उधर झाँक रहा था। तभी मैनें देखा कि एक लड़की अपनी बैग्स लिए सामने की गेट से तेजी से आती है मेरे पंक्ति के सामने खड़े हो प्राथना करने लगती है। उसके खुले हुये बाल, हँसमुख चेहरा, होठो पे मुस्कान, जब वो गा रही थी तो पता ही नही चल रहा था कि गा रही है या मुस्कुरा रही है। मै उसी को देखे जा रहा था। मेरी नजर उससे हट ही नहीं रही थी। प्राथना खत्म होते ही मै अपने क्लास मे आ गया। पता नही क्यो, अब मेरा डर, उदासी, जाती हुई दिख रही थी। मुझे इन सब अजनबियों के बिच कोई मिल गयी थी जिसे मै अपना दोस्त बना सकता था। लेकिन मेरी वो अजनबी दोस्त गयी कहाँ। मैने नजरें इधर-उधर घूमा के देखा, अरे क्या बात है यार वो तो मेरे क्लास मे ही थी। मै उसे बार-बार घूम के देख रहा था। हम दोनों कि नजरें आपस मे कभी-कभी टकरा जाती थी।
तभी हमारे टीचर क्लास मे आ गये, उन्होेंने हाजिरी लेने शुरु किये। हाजिरी से हि पता चला कि हमारी अजनबी दोस्त का नाम चाँदनी है। क्या बात है जैसा नाम वैसा ही रंग रुप पायी थी उसने। उसकी तारीफ मे और क्या कहूँ यार, बस इतना समझ लो आसमान की चाँद भी उसके सामने फीका था। मेरी स्कूल के पहली दिन होने के वजह से किसी से ठिक से बात नही हो पायी थी। अगली दिन से हमारी बात एक दुसरे से होने लगी, कुछ दोस्त भी बन गये और मन भी लगने लगा था। कुल मिलाकर हमारे स्कूल के दिन अच्छे बीत रहे थे। चाँदनी को देखते हि मेरा मन खुश हो जाया करता। जब तक उसे देख न लूं, दिल को सुकून नही मिलता था। जब भी मै अप्सेट होता या उदास होता तो उसे देखते हि सब ठीक हो जाया करता था। जैसे हि वो मेरे आँखों से ओझल होती, मै परेशान हो पागलों कि तरह उसे ढूँढने लगता, जब तक वो मिल न जाऐ मेरे दिल को सुकून नही आता था। स्कूल मे आने से ले कर जाने तक का समय कैसे बीत जाते पता ही नही चलता था। स्कूल से आने के बाद फिर स्कूल जाने तक का वक्त गुजारने बहुत मुश्किल होता था। पता नही वो छ: साल की लड़की ने क्या जादू कर दिया था हमपे।
उस दिन से पता नही मुझे क्या हो गया था। जो उसे अच्छा लगता या जो वो करती मै भी करने लगा। वो रोज स्कूल पूजा कर के आती थी तो मुझे भी पूजा करने का जूनून हो गया। मेरे स्कूल के बाहर मनोज भुजा वाले का ठेला लगा करता था। मै वहाँ अक्सर भुजा खाया करता था। एक दिन मैने वहाँ चाँदनी को आलू का चाट खाते देखा फिर क्या था मैंने भी भुजा खाना बंद और चाट शुरु कर दिया। यहाँ तक की मैने चाँदनी को स्कूल मे ऐलैस्टिक, रस्सी कूदने वाला खेल, आदि जो उसे खेलते देखता, मै भी घर आके वोही खेलता। अभी तक हम दोनों मे कोई बाते नही हुई थी बस एक दुसरे को देख के मुस्कुरा दिया करते थे। हम बच्चे लोग पढने मे तेज होने के साथ साथ बदमाश भी बहुत होते है। अक्सर लंच हमलोग क्लास के समय हि छुपा के खाने लगते, अपना ही नही दुसरे का भी। ऐसा नही है कि हमलोगों को बहुत भुख लगा होता था बस बहुत मजा आत था। और रोज़ नये नये व्यंजन का स्वाद चखने का मौका मिल जाता था। लेकिन ये हमारी मस्ती ज्यादा दिन चली नही। हमारी चोरी पकड़ी गयीं। फिर क्या हमलोगों कि अच्छी धुलाई हुई। अब ये मजा भी बंद हो गयीं।
मै अपना लंच रेग्युलर नही लाता था। लंच के समय एक दिन मै अपने क्लास मे अकेला बैठा था। तभी पीछे से किसी कि आवाज आई, दुसरे का लंच खाना बंद हो गया तो लंच खाना हि छोड़ दिया क्या। मैने पीछे देखा चाँदनी थी। उसने कही मै लंच मे गाजर का हलवा लायी हुँ, बहुत ज्यादा है, मुझसे खत्म नही होगा, खाओगे। ये हमारी पहली बातचीत और पहली लंच थी साथ मे, मना कैसे कर सकता था। हलवा तो सच मे बहुत अच्छी थी लेकिन उससे ज्यादा नहीं। उसके बाद से हम दोनों साथ मे ही लंच करते और खुब बाते करते। हम अब अच्छे दोस्त बन चुके थे। अब हम साथ मे एक ही बेंच पे बैठने लगे थे। वो स्कूल के फंक्शन मे भाग भी लेती थी, वो डांस अच्छी करती थी। मुझे फंक्शन मे भाग लेने से ज्यादा अच्छा उसे देखना लगता था। इस तरह हमारी बचपन गुजरने लगी। हम बडे होने लगे थे।

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