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कुछ दिनो बाद हम स्कूल से मिडल स्कूल आ गये। वहाँ एक टीचर थे जो पढाते कम और मस्ती ज्यादा करवाते थे। वो जब भी हमारे क्लास आते तो सबको गाना गाने को बोलते। चाँदनी सारे क्लास मे अच्छा गाती थी। इसलिए उसे बेंच खडा होकर गाने को बोला जाता। गाना खत्म होते ही टीचर उसकी गाल खींचता था, शाबासी के तौर पे।
उस समय मुझे बहुत गुस्सा आता था, मन करता की जा के दो लगाऊँ। लेकिन मै क्या कर सकता था, वो हमारे टीचर थे और मै उनका छात्र। पता है अगर आपके स्कूल मे कोई लड़की दोस्त हो तो एक फायदा तो अवश्य मिलता है। जैसे नोट्स कोपी करना हो या फाइलें बनाना ये आसानी से हो जाती है। इसके लिए अपनी दोस्त की थोडी प्रशंसा करना होता है और अंत मे प्लीज बेबी बोलना होता है बस हो गया आपका काम।
तो इस तरह हमारी मिडल स्कूल भी मस्ती मे बीती।
अब हम हाई स्कूल मे थे। यहाँ पे लड़की को अलग और लडकों को अलग सेक्शन मे बाँट दिया गया। जिसके वजह से हमारी दूरी बढने लगी। अब हमारी बाते कम होती थी। दशमी का परीक्षा हमारी जिदंगी का एक पराव होता। इसमे अच्छे नम्बर लाना हर बच्चे का सपना। और इस सपने को पुरा करने के लिए, हम सभी अपने पढाई पे ध्यान देने लगे थे। इस वजह से हम दोनों का मिलना जुलना भी कम हो गया।
एक दिन स्कूल मे अचानक किसी वजह से छुट्टी हो गयी। तो चाँदनी मेरे पास आई और बोली, पता है शाहरुख की नयी मूवी आयी है, ओम शांति ओम, मैंने आजतक सिनेमा हाँल मे कोई मूवी नही देखी है, चलोगे। मै ये सोच के डर रहा था कि अगर कही पकडे़ गये तो घर पे अच्छे से धुलाई न हो जाऐ। लेकिन मना भी नही कर सकता क्योकि मै ये मौका छोडना नही चाहता था। मैने अपने दोस्तों से पैसे लिए और चल पड़े। मैने टिकट लिया और अपनी सीट पे बैठ के देखने लगे। शाहरुख की इंट्री पे उसका उछलना, खुशी से टाली बजाना, जाहिर करता था कि वो शाहरुख की कितनी बड़ी फैन थी। शाहरुख के मरते ही वो ऐसी रोने लगीं, मानो शाहरुख भैया सच का निकल लिए हो। अब वो बेजान सी हो गयी थी, कुछ बोल भी न रही थी। मध्यांतर होते ही मैने पूछा कुछ खाओगे। वो बोली हाँ चलो कुछ ले के आते है। बाहर आते ही वो अचानक खुशी से उछल पड़ी मानो उसका मरा हुआ शाहरुख फिर से जिंदा हो गया हो। वो बोली गोलगप्पे खाते है, ये मुझे पसंद है। उसको दुबारा खुश देखके मेरी जान मे जान आई।
फिर मूवी शुरु हो गयी। हम देखने लगे, अचानक वो मेरे कंधे पे सर रख के बोली, तुम्हे चिकन बनानी आती है, मैने कहा नही, वो बोली सीख लो मुझे बहुत पसंद है, बना के खिलाना, मै मुस्कुरा दिया। पता है राज ये शाहरुख तो सब का है, लेकिन तुम मेरे शाहरुख हो। मुझे बहुत अजीब लगा, समझ नही आ रहा था, क्या जवाब दूँ।  तो मै इस बात को इग्नोर कर मूवी देखने लगा। मूवी खत्म होते ही हम बाहर आ गये। वो बहुत खुश लग रही थी, मैंने पूछा क्या बात है आज बहुत खुश हो। वो बोली बहुत बात है,  आज मै पहली बार हाँल मे मूवी देखी,  गोलगप्पे खायी और तुम्हारे साथ शाहरुख की मूवी हाँल मे देखने का सपना पुरी की। उसकी बातों से ये तो पता चल गया था कि वो मुझसे प्यार करने लगीं है, मेरे सपने देखने लगीं है। मेरे तरफ से प्यार था या नही, हमे नही पता। लेकिन हम अच्छे दोस्त थे, उसको देख के खुश होना, मुझे अच्छा लगता था।
हमारी दशमी कि परीक्षा भी नजदीक आ गयी थी। टेस्ट परीक्षा के बाद स्कूल भी बंद हो गये। सभी अपनी पढाई मे लगे हुये थे। अब हम सब दोस्तों का मिलना जुलना भी बंद हो गया। इस बिच मुझे चाँदनी की याद भी बहुत आती, लेकिन परीक्षा के वजह से उन सब बातों को इग्नोर कर के पढाई करने लगता।
दो महिने के बाद हमारी परीक्षा भी अच्छे से हो गयी। परीक्षा के खत्म होने के दो दिन बाद ही होली थी। अगले दिन सब होली खेल रहे थे, मस्ती तो हो रही थी लेकिन न जाने क्यो मेरा मन नही लग रहा था।  उस दिन मै चाँदनी को कुछ ज्यादा ही मिस कर रहा था। उससे मिले बात किये, उसको देखे महिने हो गये थे। पिछली होली मे हमारे साथ चाँदनी भी थी। और हमलोगों ने जादू वाली होली मनाई थी। जादू वाली होली, आप चौंक गये न, ठीक है हम आपकों बताते है कैसी थी हमारी जादू वाली होली। हम और चाँदनी रंग का पुड़िया ले के स्कूल आये थे, और इस बार कुछ नया करेगें सोच के, बातों हि बातों मे सभी दोस्तों के कमीज के अंदर, रंग का पुड़िया खोल के डाल दिया। अब पानी के साथ खेलने के वजह से, सबकी कमीज रंगीन हो गये। बहुत मस्ती हुई थी उस दिन।
आज रंगों के दिन भी चाँदनी के बिना बेरंग लग रही थी। मुझे चाँदनी से मिलने का मन करने लगा। मै अपने बालों को शाहरुख कि स्टाइल मे सेट किया, अपनी साइकिल ली, ओम शांति ओम के शाहरुख (मखीजा) कि तरह अपने बालों पे हाथ फेरते हुये निकल पडा़। हलांकि मुझे चाँदनी का घर देखा नही था लेकिन पता था कहां पे है। मै वहाँ पहुँच के, एक आदमी से पुछा तो उसने मुझे एक बंगले कि तरफ इशारा करते हुये बताया।
मै ये बंगला पहले भी देख चुका था, लेकिन पता नही था कि वो चाँदनी का ही है। मेरे कदम लड़खड़ाने लगे, मै  मायूस हो सोचने लगा, ये बंगले कि मै झोपड़ी का। वो इतनी बड़ी और अमीर घर की थी ये मूझे अभी पता चला था। उसे देख के न कभी लगा या अनुभव हुआ की वो हम सब से अलग या अमीर घर की है। वो दिल की अच्छी थी तभी तो इसके दिल मे कोई भेदभाव नही थी। और ऐसा अक्सर या तो फिल्मों मे या फिर बचपन के पहले प्यार मे ही होता है। आज मेरे नजर मे उसकी इज्जत और बढ गयी थी।
मै उसके घर के पास पहुँचा तो वहाँ एक आदमी था जो शायद घर कि रखवाली कर रहा था। मैने उनसे कहा कहा कि मै चाँदनी का दोस्त हूँ, मुझे उससे मिलना है, बुला दिजिये। वो बोले कि घर पे कोई नही है, सब  लोग अपने किसी रिश्तेदार के घर होली मनाने गये है। कब तक आयेंगे मैने उन से पुछा। वो बोले, उनलोगों का आना न आना बात बराबर है, इतने बडे घर मे सिफ्र चार लोग रहते है, मालिक अक्सर काम के सिलसिले मे बाहर ही रहते है, मालकिन को खुद से फुर्सत ही नही है, मालिक के बेटे बाहर मे पढते है, और चाँदनी जी अकेली इस घर मे रहती है। मै चाँदनी के लिए उसका पंसदीदा चाँकलेट डेली-मिल्क ले गया था, मै वो उस अंकल को दे दिया और बोला ये आप खा लेना, और चाँदनी आये तो बोलयेगा राज आया था उससे मिलने।
मै आ गया वापस अपने घर, चाँदनी से मिल नही पाया इसलिए उदास तो था ही लेकिन मै खुश था क्योकि हमारी दोस्तों कि लिस्ट मे चाँदनी जैसी दोस्त भी थी। मै आजतक यही सोचता था कि बड़े घर के बच्चे अक्सर बिगड़ जाते है, गलत रास्ते पे चले जाते है, मस्तीखोर होते है, लेकिन मै गलत था। चाँदनी बडे़ घर के रहती हुये भी अपनी संस्कार नही भुली थी, वो हमारे जैसे थी।
जिस लड़की को घरवाले का प्यार सही से न मिला,  वो आज प्यार बाट रही थी।

खामोश प्यार (वो बचपन वाली लड़की)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें