प्रकृति या मनुष्य ???

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एक सेलाब झूम के आया , सब ले गया बौछार ,
क्या यहि है वो कुदरत , जिससे करते हैं सब प्यार....!

कहि जलमग्न हो गया है सब , कहि कल कल से बंजर है थल ,
ये प्रकृति के तासीरो से , क्या बच पायेगे हम कल .....!

कितने माँ औ के सूखे आँचल , नयनजलो ने भिगौ दिये ,
इस भीड़ के उप्राजित में देखौ , कितने बेघर हो गये.....!

सत्ता और इंसानियत के भैटै चढ , बस गये फिर से किसी तरह सब ,
पर चिंतन में है अभि भी वही डर , कहि छिन न जाये ये फिर एक पल .....!

खयालो की यहि माला लिए हुए , एक दिन सैर पर निकल पडे ,
दैखा कुछ ऐसा द्गश्य , जो अकसर अनदेखा कर देते हम मनुष्य.....!

नीले नीरो को भी रंगों से है भर दिया , हरियाली की घना को भी , इमारतो के लिए हटा दिया ,
जब प्रकृति के साथ होगा ईतना गंदा खिलवाड़ , तो वो भी थक कर कहैगी , बहूत हुआ बस , अब लो कोहराम...!!!

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⏰ Last updated: Feb 18 ⏰

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