दस साल बाद- एक मुलाकात

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गर्मियों की  छुट्टियों में,
मैं और मेरा परिवार चित्तौड़गढ़ का किला घूमने गए थे। वहां हमने एक होटल में कमरा बुक कर लिया। दिन भर हम घूमते, थकते और रात को होटल में लौट आते। घर से बाहर रहते हुए जब तीन-चार दिन हो गए तो हमने घर वापसी का प्लान बनाया।

जब वापसी कर रहे थे तो शाम होने लगी और आस पास कोई होटल भी खाली नहीं मिल रहा था तो तभी मुझे दिल्ली में बसी एक सहेली की याद आई जो कभी मेरे बचपन में हमारे घर के पास वाले मकान में रहती थी।

कितना मेलजोल था उनके और हमारे परिवार में, वह बहुत अच्छी अच्छी बातें करती थी, उसकी बातों में रस होता था। वह बहुत अच्छा खाना बनाती थी और हम लोगों को भी जरूर खिलाती थी।

उसके आगमन से ही परिवार में खुशी का माहौल बन जाता था। मेरी और उसकी  बहुत पटती थी। हम दोनों एक दूसरे का सुख- दुख बांटती थी।

हां, तो मुझे रास्ते में उसकी स्मृति हो आई। मैंने अपने परिवार वालों से बात की कि क्यों ना हम सब मीना के यहां ठहर जाए, आज रात। सबको मेरा विचार पसंद आया तो मैंने उसे फोन मिलाया यह पूछने के लिए कि क्या वह घर पर है?

जैसे ही फोन की घंटी बजनी बंद हुई, उधर से वही प्यारी सी आवाज आई ‘हेलो कौन बोल रहे हो? ’ मैंने कहा मैं तुम्हारी सखी राधिका बोल रही हूं।

अब तक मेरी शादी हो चुकी थी और वह भी अपने ससुराल में जा चुकी थी।

मेरा नाम सुनते ही वो खुशी से उछल पड़ी, और बोली-- राधिका! बड़े दिन बाद याद किया, तुम मुझे भूल गई ना।  मैंने कहा, ‘नहीं पगली! भूलती तो फोन क्यों करती ?’
फिर उसने पूछा,‘ अच्छा यह बताओ, कहां हो?'
मैंने कहा- ‘मैं तुम्हारे घर पर हूं।’
उसकी खुशी का ठिकाना ना था, पूछने लगी ‘कितनी देर में पहुंच रही हो, तुम्हारे लिए क्या स्पेशल बनाना है’
मैंने कहा-“ आकर बात करते हैं,”

फिर पूछते पूछते हम उसके निवास स्थान तक पहुंच गए। वहां वह एकटक नजर गड़ाए हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। दूर से मुस्कुराते हुए वह हमारी  तरफ बढ़ी और मेरे गले लग गई।

मेरी भी खुशी का ठिकाना ना था, आज 10 साल बाद एक बार फिर से वह बचपन की दोस्ती अपने चरम पर थी। उसका प्यार व आवाभगत देख मेरी आंखों में भी  खुशी के आंसू झलक पड़े।

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