शब्द नहीं अब कहने को
सब्र नहीं अब बचा है
कहते राम-राज्य अब लायेंगे
वो ना रावण जैसे भी कहने को
उस देश में आज हम रहते हैं
जहा गंगा दुर्गा माँ रहीं
सिर्फ़ देवी ही स्त्री है क्या?
अब हर महिला एक खेल बनी
एक तिनके को ब्रह्मास्त्र किया
जब चाहा छूने सीता को
हर कण हस्तीनपुर चीर दिया
जब किया चीर-हर कृष्णा को
क्या यही देश था वो
जहाँ हुआ माँ का नाम ऊपर था?
क्या यही माटी में जन्म लिया
जो जला आया पूर्ण लंका था?
डॉक्टर हो या बच्ची हो
हो चाहे कोई माँ
चाहे मंदिर हो या दरगाह हो
है सुरक्षित एक स्त्री कहाँ?
माँ ने कहा होगा उससे
आज जल्दी खा के सो जाना
वो पिता भी कितना मासूम था जो
'खड़ा हूँ मैं तू आ जाना'
कोई कहे थी उसकी गलती
कोई कहे मेल-जोल बढ़ा हो
क्या ये सब तुम समझा पाओगे
जिसने खोया दिल का टुकड़ा हो?
हर शहर आज फिर जागा है
हर खून के उस बदले को
दस दिन में सब हम भूल गए
सोचो क्या होता होते अगर तुम उसकी जगह अकेले तो
बहुत हुई अब चुप्पी हमारी
मौन नहीं अब रहना है
इंसाफ चाहे तो खुद करो
ये पाप नहीं अब सहना है
~ ऋtu
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It's all about good thoughts😊
PoesíaPoetry is when an emotion has found its thought and the thought has found words. It is simply the most beautiful, impressive, and widely effective mode of saying things, and hence its important. Honestly, I have never started a poem whose end I knew...