रुपए-पैसों से ऐशो-आराम तो खरीदा जा सकता है पर अकेलेपन को बांटने वाले दोस्त नहीं. महानगरों की व्यस्त दिनचर्या में अकेलेपन की समस्या वनवास झेलने से कहीं अधिक मुश्किल होती जा रही है.
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रुपए-पैसों से ऐशो-आराम तो खरीदा जा सकता है पर अकेलेपन को बांटने वाले दोस्त नहीं. महानगरों की व्यस्त दिनचर्या में अकेलेपन की समस्या वनवास झेलने से कहीं अधिक मुश्किल होती जा रही है.
"Manik!!!!"
"Yes mom, coming!" I shouted. I was about to leave but stopped in my tracks when I heard another voice,"Manik baby!!!"
"Yes baby,coming " I ran towards my bedroom to my wife, Nandini.
"Ma...