मिलन

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आंगन में सजा पीपल का पुराना पेड़ हर दूसरे क्षण थोड़ा सा झुककर देखता। यह देखकर हैरान होता कि मैं अभी भी यहीं बैठी हूं – उसकी तनों के नीचे, यहां से हिलती तक नहीं।

बाल एक ढीली सी चोटी में बंधे हुए हैं, ऐसे बंधे हैं मानो प्रतीक्षा कर रहे हों, कब हवा का एक झोंका आए और उन्हें छेड़ जाए। शोर करते हुए पवन का एक नटखट बहाव आया और मेरी एक खुली लट को ज़रा सा छूकर फिर कहीं दूर भाग गया। मेरा पिया भी कुछ ऐसा ही है – निर्मोही, जैसे सब होते हैं, प्रेम में। बात बस इतनी सी है कि मेरा पिया परमप्रेमी है – हां, उच्च कोटि का निर्मोही, या ये कह लो कि संसार के हर प्रेम और हर प्रेमी का स्त्रोत वही है, मेरा कृष्ण।

एक बार फिर इन हरी चूड़ियों को खनकने का अवसर देते हुए मैंने उस मचलती हुई खुली लट को कान के पीछे समेटा।

आखों पर अंजन की रेखा तो नहीं, पर आंखें सूनी भी नहीं हैं। इन नादान नयनों के भीतर के अंधेरे में संजोई है आशा की एक किरन, और अंदर ही अंदर बसाई है प्रेम की एक सांवरी मूरत।

वो मेरे नयनों को "तीखे लोचन" कहके बुलाता है, पर वो है भी तो छलिया।

जो नयन उसके पास होने पर भी अश्रु से जगमगाएं, वो नयन नादान नहीं तो और क्या?

जो नयन उसके दूर होने पर भी प्रेम से भींगे रहें, वो नयन नादान नहीं तो और क्या?

जो नयन निद्रा गंवाकर हर पल उसकी राह देखें - अब आएगा, वो अब आएगा, बस आता ही होगा - वो नयन नादान नहीं तो और क्या?

जो नयन उसकी हर खुशी के लिए झर-झर अश्रु बहाने को सज्ज हों, वो नयन भला नादान नहीं, तो और क्या?

हाथों में प्रियतम के नाम की मेहंदी रचाए और पैरों में सुहाने सुर्ख रंग का आलता लगाए, माथे पर एक छोटी सी लाल बिंदी और होठों पर...होठों पर कृष्ण के नाम की मुस्कान सजाए, मैं प्रतीक्षा कर रही हूं। एक पहर बीत गया, मैं यहीं बैठी प्रतीक्षा कर रही हूं। अगला पहर भी बीत जानो दो, मैं यहीं बैठी प्रतीक्षा करती रहूंगी। आज मेरे पिया घर जो आयेंगे!

PriyatamWhere stories live. Discover now