जब दिन में ही हर ओर क्रंदन है
तो वो रात कितनी खौफनाक होगीहर गली सूनी हर घर में अँधेरा छाया
दिन खाने को दौरता है तो रात काटे नहीं कटती
हर ओर जख्म के ही दाग बिखरे हैं
वो रात न जानें कहां गुम हो गई
जब हम चाँद तारों से बातें करते थे
हर ओर ख़ुशी और सुकून था
जीवन की आशा थी प्यार की परिभाषा थी
आज तो बस काली रात कि छाया है
दम तोड़ते रिश्तों की रूदन है
आंखों में आंसू और ह्रदय में चुभन है
हम खामोश हैं पर सवाल अनगिनत है
घर-घर में चीख - पुकार है
हर ओर सन्नाटा पसरा है
ना तो खुशियों से भरा वो दिन हैं
ना प्रेम वर्षाती वो रातें
अपनों के विरह में सब कूछ बिखरा-बिखरा है
जीवन के जंग में कोई जीत गया
तो कोई हारकर बैठा है .
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कल्पना की उडान
Poetryकविता मन की वह सहज अभिव्यक्ति है जिसे कई बार हम चाह कर भी आम बोलचाल में व्यक्त नहीं कर पाते है पर वही बात अपनी कविता के माध्यम से बड़ी सरलता से हम लोगो तक पहुंचा लेते है. ठीक उसी प्रकार जैसे गहरी से गहरी वेदना को हम चंद आंसुओं में समेट लेते है.