वो गुज़रे दिन

5 1 0
                                    

आज त्योहार था तोह खयाल आया ,गाँव पर माँ बाऊजी ने क्या मनाया ।
क्या माँ ने पापा को फिर जल्दी उठाया ,क्या पड़ोस की दीदी ने फिर थाल सजाया ।
अफसोस होता है जब जवाब नही मिलते ,अंधेरी रात मे सितारे नही मिलते ।
मन करता है उस गुट मे वापस मील जाऊ,पर मिलने की हिम्मत कैसे जुटाऊ ।
बधाई देना ही बहुत लगता है ,चाहे मिलने का मन कितना भी करता है।
आत्म सम्मान की बात आ जती है , वो नही आई तोह मै क्यू जाऊ , धड़कन ये सोचकर रह जाती है।
आखिर हम भी तोह इन्सान है , गलत समय,बेमतलब खयाल ही तोह हमारी पहचान है ।
अब दूरि सहन नही होती ,पांच मिनट की बात से मिलने की आस पूरी नही होती ।
उस बचपन,बाल्पन,परिवार की याद आती है ,अपनो के डांट भरे प्यार की याद आती है ।
वो समय कुछ और था ,जब मै हम था ।
जब दी से लड़ना आदत थी ,जब माँ के पास आती खुब शिकायत थी ।
जब पापा की डांट का डर था ,जब रोज़ का एक थप्पड भी कम था ।
अब वो दीन कहा रहे ,एक उंगली उठते ही पहाड बन गये ।
अब भाईयों मे भी नमस्ते-प्रणाम होता है ,गले मिलने मे संकोच होता है ।
रिश्ते तोह वही है ,एहसास बदल गये ।
पलक झपकते झपकते ,इन्सान बदल गये ।
डर लगता है ,मै एसी न बन जाऊ।
माँ-पापा के पाँव छुते छुते,पाँव की कुल्हड़ी ना बन जाऊ।
कहना आसान है ,भविष्य तय करता है ।
नाव कितना तैरेगी ,हवा का रुख तय करता है ।
हम वही हवा के रुख जो ऐसे लहराए ,उल्झे रिश्तों को जो सुलझाए ।
उन दिनो को याद करने की ज़रूरत नही ,जियेंगे हम उन्ही दिनो मे।

Dil Ki Baat Where stories live. Discover now