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"मोनू की मां! तुम बहुत अच्छी हो" मैं यह हर दिन कहता हूं। मुझे पता है कि हर दिन वो मेरे इस प्रशंसा को एक मज़ाक के तौर पर लेती है। मगर मुझे इस बात का अंदाजा है की सिर्फ इतने सी मधुर बात उसके पूरे दिन के निराशा को एक चौथाई कम कर देती है और उस दिन वो मुस्कुराती भी है।

परंतु आज वो दिन है, और मैं इस बात को लेकर चिंतित हूं।

"क्या हुआ तुम्हे?" वो खामोश रही, "तुम्हारे बॉस ने तुम्हे डांटा क्या?" इतना सुनते ही उसने अपनी चुप्पी तोडी।

"आज जब मैं मोनू से उसके स्कूल के दिन के बारे में पूछ रही थी तब उसने एक अजीब सा प्रश्न पूछ दिया" उसकी आंखों में मुझे चिंता दिख रही थी।

"क्या पूछा उसने?" मैंने अपनी उत्सुकता को दबाने की कोशिश की। मगर मैंने सारे सवालों के पिटारे को खंगाल लिया।

"उसने मुझसे पूछा की सेक्स क्या होता है" अब मेरे दिमाग में ना जाने क्या आया, मुझे कुछ समझ न आई। "और मैने कहा की यह सवाल तुम अपने पापा से करना।

"मोनू!" पुरे दिन काम करने के बावजूद मेरे आवाज में इतनी तेज़ी थी जो कि मोनू को डराने के लिए काफी थी। वो भागता हुआ आया, और कापते हुए मेरे आगे खड़ा हो गया।

"तुमने ये शब्द कहां सुना?" मालूम था मुझे, वो हमारी बाते पहले से सुन रहा था।

"फा..फा.. फोन से" वो डरा हुआ था। मुझे दुःख था। लेकिन यह वक्त सिर्फ मोनू को समझाने का था।

"आज से तुम्हारा फोन देखना बंद, अगर मैने तुम्हे देख लिया फोन के साथ तो तुम्हारे सारी हड्डी को एक हाथ में दे दूंगा" इतना होते ही मोनू रोने लगा। उसके आसुओं को देख कर मुझे दुख तो हुआ लेकिन यह करना जरूरी था।

फिर क्या होगा, वही हुआ जिसका मुझे अंदाजा था, मोनू की मां भी उसे गले लगा कर रोने लगी। दोनो का प्यार देखने में जितना खूबसूरत था, उतना ही खतरनाक भी।

मासूम Where stories live. Discover now