शुक्रवार की वो सुनसान रात जहाँ लोग रात के ९ बजे से ही घर में दुबक जाते हैं, वहाँ रात ९ बजे से ही कब्रिस्तान जैसा सन्नाटा छा जाता है। कड़ाके की इस ठंड में हड्डियाँ तक काँपने लगती हैं, बाहर इंसान तो क्या कुत्ते का बच्चा भी नजर नहीं आता फिर भी कुत्तों के रोने की आवाज़ कानों के पर्दे फाड़ रही थी। सड़क पर लगा स्ट्रीट लैम्प भी बार-बार जल बुझकर माहौल को और डरावना बना रहा था मानो किसी एलियन शिप (UFO) को देख लिया हो। ठंड से ठिठुरती उस सुनसान रात में एक साया बेतहाशा भागा जा रहा था, दौड़ते-दौड़ते उसकी साँस बुरी तरह फ़ूल रही थी पर वो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। बेचारा दौड़ते हुए़ अपनी घड़ी बार-बार देखकर बेचैन था, शायद कहीं जाने की जल्दी थी उसे और कमीनी किस्मत भी देखो! ……… वो बेचारा मैं ही था।
२९ दिसम्बर सुबह के ८ बजे - दिन रोज की तरह ही था। सुबह उठना, अलार्म बंद कर फिर सो जाना फिर ७ बजे घड़ी देखकर एैसे चौकना जैसे गर्लफ्रेंड के बिस्तर पर बीवी को देख लिया हो। दौड़ते-दौड़ते बस पकड़ना फिर गाय-बकरियों की तरह ठूँस-ठूँस कर भरी ट्रेन में घुसने पर एैसे जशन मनाना जैसे ओलम्पिक से मेडल जीत लिया हो।
सचिन भाईसाहब, ऑफ़िस में मार्केटिंग एक्ज़िक्यूटिव हैं, हर काम में नंबर एक, हिस्ट्री, राजनीति से लेकर खेल तक कुछ भी पूछ लो, मजाल है कि जवाब ना हो इनके पास?
मुंबई ऐसी नहीं थी पहले पर पिछले कुछ सालों से यहाँ का मौसम काफ़ी बदल गया है। ठंड से मेरे दाँत बज रहे थे और दौड़ते-दौड़ते अब मेरी हड्डियाँ भी ठुमरी गा रही थी। मैंने घड़ी देखी, रात के १ बजकर १५ मिनट हो रहे थे, दिनभर व्यस्त रहने वाली सड़क पर आज सन्नाटा पसरा था। दादर स्टेशन अब कुछ ही दूर था पर मुझे जल्दी करनी होगी अन्यथा मेरी आखिरी लोकल भी छूट जाएगी। साल का आखिरी सप्ताह है ये और अगले तीन दिनों तक लोग छुट्टियों में मौज मनाएँगे, सचिन ने बहुत कहा कि मैं उसके साथ नये साल की पार्टी में चलुँ पर मुझे घर पर आराम करना था, पिछला हफ़्ता बहुत ही व्यस्त था और कम्बख्त बॉस ने काम करवा-करवा कर मेरा तो तेल ही निकाल दिया। क्रिएटिव डिज़ाईन जॉब ही एैसा है। यही सोचते-सोचते दादर स्टेशन सामने दिखा तो जान में जान आई, मैं दौड़कर प्लेटफ़ार्म नंबर ५ पर पहुँच गया और ट्रेन का इंतज़ार करने लगा।
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वो आखिरी ट्रेन
Paranormalनरेंद्र एक साधारण सा व्यक्ति अपनी आखिरी लोकल ट्रेन पकड़ता है लेकिन उसे क्या पता था कि वो ट्रेन उसे सौ साल पीछे अतीत में सन् 1919 में ले आई जहाँ उसका सामना होता है एक ऐसे रहस्य से जिसका संबंध हज़ारों वर्ष पुरानी एक घटना से था। फिर शुरू होती है जिंदग...