शेरनी

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"का रे ददुआ! इन दोनों की लाशों को अभी तक ठिकाने नहीं लगाया?"

"अ अभी लगाता हूँ" एक काला सा ठिगना आदमी जल्दी जल्दी आया और दोनों लाशों को वहां से घसीट कर ले गया। थोड़ी देर में कहीं फेंकने के आवाज आई। 

मैं सब समझने की कोशिश ही कर रहा था कि अचानक तीन हट्टे-कट्टे नकाबपोश आये और उस पेड़ से बंधे साये को घेर कर खड़े हो गए। कंधे पर टँगी बन्दूक आग की रौशनी में मानो चेतावनी दे रही हो कि मुझसे दूर रहो। अचानक एक नकाबपोश ने बड़ा सा छुरा निकाला और उस साये की तरह बढ़ गया। 

"कितनी सख्त है रे तू! .... किसके लिए अपनी जान देने पर तुली है? ..... वो लोग तुझे बचाने नहीं आ पाएंगे" नकाबपोश की आवाज भारी थी की किसी का भी दिल बैठ जाए। 
"सही कहा। .... वो लोग नहीं आएंगे , तुम लोगों को मुझसे बचाने के लिए" जिस आवाज़ ने उसका जवाब दिया वो भारी तो नहीं थी पर फिर भी उसमे वो तेज था की वो नकाबपोश भी निरुत्तर होकर पीछे हट गया। 

"डर गया का रे रंगा?...." फिर वही आवाज़, शायद उनका सरदार था। अँधेरे से एक साया बाहर आया, उम्र कुछ ५० साल,  कद ५ फ़ीट, दुबला शरीर और रंग एकदम काला। माथे पर एक गहरा कटे का निशान था जो शायद किसी दुर्घटना में मिला था। धूर्त आँखे और लंबे चेहरे पर झूलती दाढ़ी, पूरा का पूरा शैतान का पुजारी लग रहा था पर नाम था उसका देव ..... नामदेव। वो लोग उसे देबू दादा के नाम से बुला रहे थे। 

वो धीरे-धीरे लँगड़ाते हुए उस जनाना साये के पास गया और मशाल एकदम उसके चेहरे के पास रखकर बोला "बकरी कितना भी उछले-कूदे पर वो भेड़ियों का शिकार ही होती है, ..... बोलने दे इसे आखिर मरने से पहले इसे अपनी इच्छा तो पूरी कर लेने दे, ....... बस जैसे ही चाँद निकलेगा हम बलि देंगे और तब देखेंगे की इसके तड़पते सर में कितनी जान है, ...... इसका गर्म खून जब उस पत्थर पर बहेगा तब हम इसके खून की गर्मी देखेंगे।" 

देबू, बुड्ढा कहीं का साला! मैंने मन ही मन उसे गाली देते हुए कहा की तभी वो जनाना आवाज गूँजी "भेड़ियों को यही लगता है की शेरनी अगर बंधी है तो वो भी बकरी लगती है पर उनकी एक गलती उनपर भारी पड़ती है", "तू मेरी बलि लेने आया है पर किस्मत बड़ी बुरी चीज है जो कभी भी धोका दे जाती है"। उसकी आवाज में मौत का डर नहीं बल्कि जूनून था। उसकी जनाना आवाज मर्दों से भी शक्तिशाली थी। 

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⏰ पिछला अद्यतन: May 06 ⏰

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