कुछ दिनों बाद मुंबई के एक नामी ऑडिटोरियम में शाम के वक़्त, हजारों की तादाद में लोग रोमांचित हो रहे थे। और उनकी ज़ुबान पर बस एक ही नाम "अर्श राज, अर्श राज, अर्श राज"
सारी मैन लाइट्स ऑफ! अगर कुछ थी, तो सिर्फ़ उनके फ़ोन की चमकती फ़्लैश लाइट्स। और उन्हीं फ्लैश लाईट्स की रौशनी से और फिर अगले कुछ पलों में अचानक, अंधेरे में डूबे उस स्टेज पर, सुरों की एक झंकार बज उठी। और एक पल में ही जैसे, उस भीड़ की पूरी आवाज़, उस एक झंकार में जाकर समा गई। एकदम से, पूरा का पूरा ऑडिटोरियम, शांत हो गया। मगर उस शांति को चीरते हुए, लोगों की धड़कनें, एक लय और एक ही ताल में जैसे, अगले झंकार का ही इंतज़ार कर रहीं थी। और फिर अगले ही पल मेरी उंगलियों ने, गिटार की तारों को छेड़ना शुरू कर दिया। इधर वे तार छिड़े, और उधर पूरा का पूरा ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इसी के साथ स्टेज के पीछे की सफ़ेद लाइट्स भी ऑन हो गई। और उन्हीं लाइट्स के बीच, अपने एक घुटने पर टिक कर, बंद आंखों संग मैं सुरों की झंकार, पूरी रफ़्तार के साथ बिखेरना शुरू कर चुका था। थोड़ी देर में लोगों में जोश, पूरी तरह से भर चुका था। और फ़िर अगले ही पल, पूरे फीलिंग्स के साथ खड़े होते हुए, मैने गाना शुरू कर दिया। फील इसलिए भी पूरा था, क्योंकि गाना कोई और नहीं, बल्कि वो गाना था
"अब तेरे बिन जी लेंगे हम! ज़हर जिंदगी का पी लेंगे हम!"