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                         सञ्जय उवाच

दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत ।।२।।

अर्थात- संजय ने कहा- है राजन्पाण्डुपुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे

                    Sanjay Uvaach(says)

Drishtva tu Pandavanikam vyudham Duryodhanastada.
Acharya Mupasangamya Raja Vachanambravait .2.

That means- Sanjay said- Hey Rajan. Seeing the formation of the army by the sons of Pandu, King Duryodhana went to his guru and said these words.

तात्पर्यः धृतराष्ट्र जन्म से अन्धा था। दुर्भाग्यवश वह आध्यात्मिक दृष्टि से भी वंचित था। वह यह भी जानता था कि उसी के समान उसके पुत्र भी धर्म के मामले में अंधे हैं और उसे विश्वास था कि वे पाण्डवों के साथ कभी भी समझौता नहीं कर पायेंगे। क्योंकि पाँचों पाण्डव जन्म से ही पवित्र थे। फिर भी उसे त तीर्थस्थान के प्रभाव के विषय में सन्देह था। इसीलिए संजय युद्धभूमि की स्थिति के विषय में उसके प्रश्न के मंतव्य को समझ गया। अतः वह निराश राजा को प्रोत्साहित करना चाह रहा था। उसने उसे विश्वास दिलाया कि उसके पुत्र पवित्र स्थान के प्रभाव में आकर किसी प्रकार का समझौता करने नहीं जा रहे हैं। उसने राजा को बताया कि उसका पुत्र दुर्योधन पाण्डवों की सेना को देखकर तुरन्त अपने सेनापति द्रोणाचार्य को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने गया। यद्यपि दुर्योधन को राजा कह कर सम्बोधित किया गया है तो भी स्थिति की गम्भीरता के कारण उसे सेनापति के पास जाना पड़ा। अतएव दुर्योधन राजनीतिज्ञ बनने के लिए सर्वथा उपयुक्त था। किन्तु जब उसने पाण्डवों की व्युहरचना देखी तो उसका यह कूटनीतिक व्यवहार उसके भय को छिपा न पाया।

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Meaning: Dhritarashtra was blind from birth. Unfortunately he was also deprived of spiritual vision. He also knew that like him, his sons were also blind in matters of Dharma and he was confident that they would never be able to compromise with the Pandavas. Because all five Pandavas were pure by birth. Still he had doubts about the effectiveness of the pilgrimage site. That is why Sanjay understood the intention of his question regarding the situation on the battlefield. Therefore he wanted to encourage the disappointed king. He assured him that his sons were not going to make any kind of compromise under the influence of the holy place. He told the king that his son Duryodhana, after seeing the Pandavas' army, immediately went to inform his commander Dronacharya about the real situation. Although Duryodhana has been addressed as a king, due to the seriousness of the situation he had to go to the commander. Therefore Duryodhana was completely suitable to become a politician. But when he saw the strategy of Pandavas, his diplomatic behavior could not hide his fear.

To be continued....

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