1-सभ्यता

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सभ्यताएँ स्वयं में अनेक युग समेटे होती हैं,
सभी युगों का इतिहास,
गुणगान करता है,
सभ्यताओं की भव्यता का,
उनके विस्तृत क्षेत्रों का,
बहुत सी सभ्यताएँ ऐसी थीं,
जिनका नष्ट होना असंभव था,
वे आध्यात्म और विज्ञान का बैजोड़ नमूना थीं,
लेकिन फिर भी नष्ट हो गईं,
उनको आज धरती की गहराईयों में,
विभिन्न परतों में ढूंढा जा सकता है,
आज जमीन इतिहास को अपने आँचल में,
छुपाये बैठी है,
एक माँ की तरह,
शायद वो उन यादों को ताजा रखना चाहती है,
जो उसकी विभिन्न सभ्यताओं से जुड़ी हैं,
वो उन्हें कभी नष्ट नहीं होने देती,
खुदाई में पुनः सभ्यताएँ जीवित हो उठतीं हैं,
केवल मनुष्य के लिए,
क्योंकि कभी किसी सभ्यता का अंत हुआ ही नही,
सभ्यताओं का सिर्फ विकास हुआ है,
विकसित होकर वह आज भी विद्यमान हैं,
मनुष्य की सामाजिक और राजनीतिक मानसिकता,
उसकी अर्थ की लालसा,
विकास हेतु प्रेरित करती है,
प्रथम पाषाण फिर अग्नि और पहिया,
सभ्यताओं के विकास का साक्षी रहा है,
आगे चलकर इनका स्थान विद्युत ने लिया,
सभ्यताएँ विकासशील हैं,
सभ्यताओं का जन्म और विकास,
मनुष्य की प्रतिभा का प्रतीक है।
-अरुण कुमार कश्यप
11/09/2024

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