उन उदास गलियों में
सफर करते करते
इधर देखा उधर देखा
पर पहचाना कुछ भी नहीबचपन के बाद जीवन
बीता तो यहीं था
फिर यहाँ अनजान रास्तों
के सिवा आज कुछ जाना नहीजिंदगी गुज़ार ली हमने
इन रास्तों पर दौड़ते दौड़ते
पर आज किसी ने हमें
और हमने किसी को पहचाना नहीवो कल हमारी साख के कायल थे
आज हमारी राख पर चलते हैं
इन्ही भूले हुए रास्तों पर
जिन्हें हम आज बिन देखे टहलते हैंअनदेखे अनसुने अंधियारों में
ना जाने पहचाने उजियारों में
डूब गये हैं आज हम
अपनी ही बनाई दीवारों में, कतारों मेंमन बंजर है आज उन ख्यालों से
कल बुलबुला के खिलते थे जो
उन्हीं रास्तों मिलते थे वो
आज हम ही यहाँ हमारे पैरों तले हैंउन्ही जाने माने राहगीरों के साथ
उन्ही चंद फ़कीरों के साथ
ग़ैर हम भी हैं वो भी हैं
उनका हमारा आज कोई ठिकाना नही