आवाज़ देती है सुनाई

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आवाज़ देती है सुनाई
तेरी तन्हाइयों की आज भी
गूंजी थी जहां कहीं
वो तेरे टूटने की झंकार थी

वो काफिलों की रात थी
उन काफिरों में एक बात थी
बोलते थे वो सभी
जो रूह थी नकारती

वो आज भी पुकारती
हैं हमें बेगार सी
है वरन खामोशी ही
उनकी पक्की यारगी

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