दो

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कहते हैं देने वाला जब भी देता है छप्पर फाड़ के देता है। पर हरी के जिंदगी में यह बात मुसीबतों के संदर्भ में सत्य सिद्ध हो रही थी। झुनियां की मृत्यु के पश्चात हरी के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।

गरीब दिहाड़ी मजदूर के पास धन संचय न के बराबर ही हो पाता है, वह जो भी कमाता है उसका एक बड़ा हिस्सा उस उधारी को चुकाने में चला जाता है जो उधार वह काम न मिलने की स्थिति में ले लेता है। हरी भी दिहाड़ी मजदूर था, और उसकी कहानी भी अन्य मजदूरों के जैसी ही थी। जितनी भी संचित की हुई निधि थी, झुनियां के अन्तिम संस्कार में लग गई, हरी ने रघू की सहायता से झुनियां को विधि के अनुसार विदा कर दिया।

नूरपुर गांव से गंगाजी से कुछ ही दूरी पर स्थित था, झुनियां को यहीं गंगा के तट पर अग्नि को सौंप दिया गया। शमसान घाट ऐसी जगह है जहां पहुंचने पर मनुष्य का मन अलग ही दुनियां में होता है, सांसारिक और भौतिक वस्तुओं से उसका मोहभंग होकर आध्यात्म की ओर रुख करता है। जीवन-मरण के रहस्य को जानने की जिज्ञासा होती है, परन्तु वहां से वापस आने के बाद वह फिर से उसी जीवन में खो जाता है जिसे वह जी रहा होता है।

झुनियां के शव को सभी बंधनों से मुक्त किया गया, उसके दोनों हाथों में पड़ी दो-दो चूड़ियां तोड़ दी गईं, गले में पड़ा काला धागा भी तोड़ दिया गया। सभी बंध तोड़ने के बाद गंगा स्नान कराया गया और अंत में उसके शव को चिता पर रख दिया गया। आकाश में मेघ बरसने को तैयार थे और हवा का तेज वेग उनको दूर ले जाने का पुरजोर प्रयास कर रहा था, हल्की बूंदाबांदी के बाद अंततः हवा की विजय हुई। रघू ने भाई के हाथ में अंगार रखा हुआ फूंस थमाया, और पीछे हट गया, आगे का काम हरी का था, झुनियां के चेहरे पर पड़े कपड़े को हटाकर हरी ने आखिरी बार उसे निहारकर ढक दिया। रीति के अनुसार आग लेकर उल्टे पैर चिता के चक्कर लगाने लगा और दूसरे ही चक्कर में आग जल उठी। लोगों का मानना है कि यदि मृतक की कोई इच्छा अधूरी रह जाए तो अग्नि जलने में समय लेती है पर झुनियां की तो सभी साध पूरी हो चुकी थीं तो देरी का तो प्रश्न ही नहीं उठता। जैसे ही फूंस ने जलना आरंभ किया हरी ने वह आग चिता को दे दी, चिता तेजी से जलने लगी, आग की ऊंची - ऊंची लपटें देखकर हरी का मन उनमें समा जाने को हो रहा था। उसका कलेजा छाती चीरकर बाहर आने को आतुर था। हाय री नियति! झुनियां ने जिस संतान को पाने के लिए दिन-रात मनौती मांगी उसको ठीक से दुलार भी न कर पाई। और फिर देखते ही देखते झुनियां का शरीर राख के ढेर में बदल गया।

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