अल्हड़ बच्च्पन

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तुम जब अकेले में बैठो
तो मुझे सोचना
सोचना की कौन हूँ मैं
सोचना की क्या हूँ मैं !!

एक बिन बरसी बदली हूँ
या एक सुखा सावन हूँ मैं
सोचना की अल्लहड़ बचपन हूँ मैं
या बारिश में बहती कागज़ की नाव हूँ मैं !!

फिर धीरे से मुझ को बुला लेना
और कानों में तुम कहना
जो भी हो मेरी हो
देखना बिन बादल बरस जाउंगी मैं !!

मनीषा

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⏰ पिछला अद्यतन: Mar 15, 2016 ⏰

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