मैं जैसे ही अपने घर के दरवाजे पर कदम रखा कि मेरे आँखों के सामने जैसे अँधेरा छाने लगा, ऐसा लग रहा था मानो बार-बार मुझे कोई सातवें मंजिल से नीचे धकेलने की कोशिश कर रहा हो।
खुद को अपने पैरों के बल खड़ा रख पाना जैसे मुश्किल होने लगा। अचानक मेरी आँखे बन्द हुई और मैं धरती पर गिर गया। मुझे होश न रहा। मैं यूँही कुछ देर धरती पर बेहोश पड़ा रहा।
शाम का वक्त था। मेरी माँ जैसे ही लालटेन लेकर घर और बाहर रौशनी करने आई, मुझे यूँ धरती पर बेहोशी की हालत में देखकर घबरा गई। उसने लालटेन वहीँ छोड़ जोर की आवाज लगाई। घर के अंदर से मेरी दादी और बहन दौड़कर बाहर आई। उसके बाद मैं बेसुध हो गया। मुझे पता नहीं चला कि मेरे साथ क्या हो रहा है।
करीब दो घण्टे के बाद जब मेरी आँखे खुली तो अपने आसपास अपने घरवालों के साथ-साथ कुछ पड़ोसियों की भीड़ पाया। मेरे बगल में जल रहे धूप और अगरबत्ती की सुगन्ध मेरे नाको तक पहुंचा। मुझे आश्चर्य होने लगा कि आखिर मुझे हुआ क्या?
मैंने अपने सामने एक तांत्रिक को पाया जो हाथ में गंगाजल और तुलसी लेकर कुछ मंत्रजाप कर रहा था और उस गंगाजल को मन्त्र के साथ मेरे ऊपर कुछ समय अंतराल पर छिड़क रहा था।
मैं कुछ बोलने ही बाला था कि मेरी नजर उस तांत्रिक के पीछे खड़ी एक परछाई पर गई। वो परछाई मुझे कुछ जानी पहचानी सी लगी, लेकिन इंसानी रूप से कहीं अलग और डरावना। उस परछाई की प्रतिक्रिया देखकर ऐसा लग रहा था मानो तांत्रिक के हरेक मन्त्र का उच्चारण उसे कुछ दर्द का एहसास करा रहे हो।
कुछ देर के बाद वो परछाई मेरी नजरो से ओझल हो गई। अब तांत्रिक ने भी मन्त्र पढ़ना बन्द कर दिया। उसने अगरबत्ती के राख को अपने हाथ में लिया और कुछ मन्त्र पढ़ते हुए मेरे माथे में लगाया। फिर लोगों का हुजूम कुछ देर में खत्म हुआ। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा था मेरे साथ।
अपनी गोद में मेरा सिर रखकर माँ बड़े प्यार से सहला रही थी। जब मुझे रहा नहीं गया फिर मैं माँ से पूछा, "माँ, क्या हुआ था मुझे? और ये सब क्या हो रहा था मेरे साथ?"
माँ ने मेरे सिर पर हाथ रखकर प्यार से बोली, "बेटा! अभी सो जाओ। मैं कल सुबह सब बताती हूँ।"
फिर वो मुझे अपने कमरे में ले जाकर बिछावन पर सुला दी। मुझे भूख नहीं थी, और न ही माँ ने खाना खा लेने की जिद्द की।
कुछ देर यूँही कमरे की दीवारों और छत को निहारते हुए मुझे नींद आई। और मैं सो गया।
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बूढ़ी आत्मा
Horrorयह कहानी है एक भटकती आत्मा की, जिसका भौतिक क्षरण तो हुआ पर उसकी आत्मा भटकती रही। ये आत्मा भटकती रही उन चीजों के आसपास जो उसको सन्तुष्ट किया अंतिम साँस लेने से पहले। असमय मृत्यु की वजह से मोक्ष न प्राप्त हुई ये आत्मा बन्धी रह गई इंसानी दुनिया से।