भाग-3

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खिड़की से बाहर का दृश्य देखते ही मै सिहर उठा था। मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि आखिर ये हो क्या रहा है। फिर मैंने अपने डर को थोड़ा काबू में किया और अपने जगह पर जाकर बैठने की सोचा। पर यह क्या, मैंने अपना बस्ता दुसरे बेंच पर रखा था फिर वहाँ से मेरा बस्ता गया कहाँ? हर बेंच पर ढूंढने के बाद मैंने देखा कि अंतिम बेंच के नीचे मेरा बस्ता गिरा हुआ था। मै और डर गया। डर के मारे मै पसीने से सन गया था और माथा जोर से टनकने लगा था। मैंने अपना बस्ता उठाया और अपने कंधे पर लादा। शायद प्रार्थना अब खत्म ही होने वाली थी क्योंकि प्रार्थना सभा से "संविधान की प्रस्तावना" की गूंज मेरे कानों तक सुनाई दे रही थी।
जबतक बच्चे क्लास में आए तबतक निकल लेता हूँ, यह सोचकर मै क्लास से बाहर आ गया। अपने धीमे कदमों के साथ मै स्कुल के गेट पर खड़ा था। तभी मेरे क्लास का एक बच्चा दूर से आता दिखाई दिया, शायद आज उसे भी देर हो गई थी स्कुल आने में।
वो पास आया और पूछा, "तू यहाँ क्यों खड़ा है? मास्टरजी ने देर से आने की वजह से बाहर कर दिए क्या?"
मैंने कहा, "नहीं, आज मन कुछ ठीक नही लग रहा है। इसलिए घर जा रहा हूँ।"
उसने कहा, "अच्छा ठीक है। मै चलता हूँ।"
यह कहकर वो स्कुल के अंदर चला गया और मै अपने घर की तरफ पैदल चलने लगा।
स्कुल से घर जाते हुए रास्ते में एक घर पड़ता है। वो घर मेरे घर के पास में ही है। उस घर में कोई नही रहता है, शायद दस सालों से जैसा कि मैंने सुना था। कोई बता रहा था कि उस घर की जो बुढिया मालकिन थी उसके मरने के बाद उसके बेटे शहर मे रहने लगे थे। उसके बाद वो लोग कभी नही आए वो घर देखने। तब से वो घर ऐसे सुनसान पड़ा रहता है। वैसे उस घर में जाने से सभी मना करते है, कहते है वहाँ उस बुढिया की आत्मा रहती है। पर दिन में बच्चे चुपके से जाकर वहाँ कंचे खेल करते थे, उस घर के आंगन में। जब मै उस घर के पास से गुजर रहा था तभी मै अचानक से रुक गया। मैंने देखा एक काली बिल्ली(वही खिड़की वाली) सामने से जाकर रास्ता काट दी और सीधा उस घर में चली गई। काली बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ होता है इसलिए मै इंतजार करने लगा कि सामने से कोई आए और रास्ता पहले पार करे फिर मै जाऊं। तभी उस घर से कुछ बच्चो की आवाज सुनाई दी। मैंने सोचा हो सकता है कुछ बच्चे कंचे खेल रहे होंगे। यह सोच कि यही रुक जाता हूँ स्कुल के आधे पहर तक फिर घर जाऊँगा। इससे माँ भी नही पूछेगी कि क्यों आज मै स्कुल नही गया। यह सोचते-सोचते मै उस घर के दरवाजे तक पहुंचा। घर के आंगन में अपना कदम रखने ही वाला था कि मै देखकर दंग रह गया। मेरे सामने कोई भी बच्चा कंचे खेलते नजर नही आए सिवाय उस काली बिल्ली की जो घर के आंगन में बैठ मुझे घुर रही थी। यह देखते ही मानो मेरे पैर जमीन से जम गए हों। बहुत जोर लगाया और बिना पीछे मुड़े मै वहाँ से सरपट अपने घर की तरफ दौड़ा। जब मै घर पहुंचा मेरी सांसे फुल रही थी और धडकन मानो किसी रेलवे स्टेशन के रेल के गुजरने से जो धक-धक की आवाज आती है उस तरह हो गई थी।
तभी मेरी माँ भी बाहर आ गई कमरे से। दूर से ही देखकर पूछा, "क्या हुआ, आज स्कुल से लौट क्यों आए?"
मैंने कोई जबाव नही दिया और मूर्ति के जैसा खड़ा रहा। यह देख माँ घबरा सी गई और मेरे पास आई। पसीने से सने हुए कपड़े, तेज सांसे और धडकन की तीव्रता को देख माँ ने चौंकते हुए पूछा, "तू कुछ बोल क्यों नही रहा। हुआ क्या तुझे?"
और फिर मै धड़ाम से जमीं पर गिर गया......
To be continue

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⏰ पिछला अद्यतन: Dec 29, 2016 ⏰

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