भाग-2

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सुबह-सुबह अलार्म की घंटी बजने लगी। मेरी आंखे बंद थी और दोनों हाथ घड़ी ढ़ूंढ़ रही थी। जैसे-तैसे घड़ी हाथ लगी। झट से मैने घड़ी का मुंह बंद किया। फिर कुछ देर के बाद जैसे ही सूरज की रौशनी मेरे मुंह से टकराई, मेरी आंखे न चाहते हुए भी खुल गई। जैसे ही आंखे खूली, मैने माँ को अपने कमरे मे आता देख झट से बिछावन पर उठ बैठा।

माँ कमरे मे आते ही मुझसे पूछी, "अब तुम्हारी तबीयत कैसी है?"

मैने पूछा, "मुझे क्या हुआ था? मेरी तबीयत तो ठीक ही है"

माँ ने कहा, "अच्छा ठीक है, अब जल्दी से बिछावन से उठ नही तो स्कूल के लिए देर हो जाएगी तुझे"

मै एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह बिछावन से उठा और स्कूल के लिए तैयार होने चला गया। जबतक मै तैयार हुआ तबतक माँ के रसोई का काम भी पूरा हो गया था। जबतक मै नास्ता किया तबतक माँ ने टिफीन मे मेरे लिए दोपहर का खाना रख दी। फिर मैने अपना बस्ता(किताबों का झोला) अपने पीठ पर लिया और अपने स्कूल की तरफ निकल गया।

चूंकि आज मै उठा ही देर से था तो स्कूल पहूंचते-पहूंचते देर हो गई थी। जबतक मै स्कूल पहूंचा, स्कूल के प्रार्थनासभा से प्रार्थने की आवाज आने लगी थी। मै प्रार्थनासभा मे जाना ठीक नही समझा, क्योंकी अगर कोई शिक्षक देख लेते तो देर होने की वजह से मुझे उनकी डांट सुननी पड़ती। अगर मेरे पास देर होने की कोई खास वजह होती तो शायद प्रार्थनासभा मे देर से ही सही पर जाने की हिम्मत करता। इसलिए सबसे नजर बचाते हुए मै चुपके से अपने क्लास ने दाखिल हो गय़ा, और अपनी जगह पर आकर बैठ गया। चूंकि प्रार्थना खत्म होने में अभी देर थी तो मै सोचा क्यों न इतने समय मे कुछ पढ़ लिया जाए। यही सोचकर मैने अपने बस्ते से किताब निकाला और उसपर ध्यान लगाने की कोशिस करने लगा।

अभी किताब खोले कुछ देर भी नही हुई थी कि अचानक से खिड़की के खटखटाने की आवाज सुनकर मै चौंक सो गया। मै डर सा गया क्योंकी अभी क्लास मे मै अकेला था। मै थोड़ा सा हिम्मत जुटाकर खिड़की के पास गया। खिड़की खोलने की बात तो दूर खिड़की छूने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी। एक बार फिर से खिड़की पर खटखटाहट की आवाज हूई, पर इस बार आवाज पहले की तुलना मे काफी तेज थी। ऐसा लग रहा था मानो कोई अपने दोनो हथेलियों से खिड़की पर चोट कर रहा हो।

मैने थोड़ी और हिम्मत जूटाई और एक झटके के साथ खिड़की का दरवाजा खोला। खिड़की का दरवाजा खुलते ही मेरी आंखो को जो दिखा, उसे देखते ही मै कुछ देर के लिए अपनी जगह पर मूर्ती बना खड़ा रहा। यहाँ तक की मै सांस लेना भी भूल गया था कुछ देर के लिए।

To be continued.............  

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