दिल की बात

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आँखों में जब देखती थी उनकी ,

तो अपना ही अक्स दिखता था ।

खुश हो जाती थी सोच के ,

कि बस मुझसे ही थी उनकी दुनिया ।

बातों-बातों में ही कह देती थी उनसे ,

रूठी जो आज तुमसे तो क्या कर जाओगे ?

आज पास में हूँ ,

क्या कल भी मुझे पाओगे ?

चाहा कि उनसे आज ये कहलवा ही लूँ ,

दिल की बात उनके मुख पे ला ही दूँ ।

क्यूँ खफा हो जाते हैं बात-बात पर ?

क्या हर बार मैं ही मनाती रहूँ ?

आज सोचा रूठ कर हम भी देख लेते हैं ,

थोड़ा मानना-मनवाना करवा ही लेते हैं ।

कहा उनसे अब ना बोलूंगी ,

रूठी हूँ तुमसे ,

ये मुँह ना खोलूंगी ।

कहकर जो मैनें मुँह था फेरा ।

ना देखा फिर उन्हें हो गया सवेरा ।

तकती रही दरवाज़े को ,

बस यही सोचती रही ।

बात बस इतनी सी थी ,

जो समझ ना सकी ।

रूठना तो खेल था उनका ,

मनाना ज़िन्दगी मेरी ।

पलछिन (शायरी/ कविता)(Wattys2014)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें