"भैया ई ने तो अपन खाँ रोक दओ," हलके ने दरोगा के चेहरे के तैश को निहारते हुए कहा.
"गलती सबसे होती है," संतावन ने मुस्कुरा कर कहा. उसने बुलेट रोकी ज़रूर थी पर इंजन बंद नहीं किया था. धड़धड़ करती बुलेट अभी भी दरोगा को चेतावनी दे रही थी.
एक हवलदार डंडा पटकता हुआ संतावन की तरफ बढ़ा. संतावन अपनी जगह बैठा मुस्कुराता रहा. हवलदार को लगा कि शायद कोई टेढ़ी चीज़ है. फिर भी सफ़ेद जीप के अन्दर से आते स्पष्ट निर्देशों के तहत हर किसी को रोका जाना था. साहब को नए साल पर बड़ी पार्टी करनी थी और उसके लिए जुर्माने वसूलने ज़रूरी थे.
"काए भैया, हेलमेट किते है?" हवलदार ने संभलकर पूछा.
"टोपा लगा कर चलाने से भैया के बाल ख़राब हो जाते हैं," हलके ने जवाब दिया और खी-खी कर हँस दिया. संतावन की हवा ने उसके अन्दर भी जोश भर दिया था.
"अच्छा, तो जो बात है," हवलदार खीझ कर बोला और मन में माँ-बहन को याद करते हुए वापस दरोगा के पास चला गया.
"साहब, कोई राजा साहब हैं. आप ही निपटो," हवलदार ने दरोगा से कहा. दरोगा को तो जैसे उसकी मुंह मांगी मुराद मिल गयी थी. दरोगा गुड्डू सिंह बुंदेला के अन्दर पुराने ज़माने वाली ठकुराई भरी पड़ी थी और लड़ने के लिए वो काबिल उम्मीदवार ढूंढता ही रहता था.
दरोगा उठ कर यदि बुलेट तक जाता तो बात बिगड़ जाती इसलिए उसने अपने अर्दली को कुछ समझाया. अर्दली खटाक से संतावन के सामने प्रकट हुआ, बुलेट की चाभी निकाली और सटाक से लाकर दरोगे के सामने रख दी.
अब संतावन जो अभी तक अपनी अकड़ में बैठा हुआ था, उसके सामने एक प्रश्न आ खड़ा हुआ. अगर वह बुलेट से उठ कर, चल कर दरोगे तक जाएगा तो उसकी धाक में कमी और अगर नहीं जाएगा तो बेटा खड़े रहो ऐसे ही.
हलके यह समझ चुका था. वह आराम से बुलेट से उतरा और दरोगा की तरफ बढ़ा. दरोगा ने उसकी तरफ न देखते हुए अपना काम जारी रखा.
"आप शायद छतरपुर में नये आए हैं?" हलके ने अपनी पतली आवाज़ में बन्दर घुड़की दी.
"क्या बोला बे?" दरोगा ने अकाट्य प्रत्युत्तर दिया.
"क.. कुछ नहीं, सर," हलके हाथ बांधकर कुछ देर खड़ा रहा और फिर लौट आया. और कोई बोध उसे हो न हो, यह अवश्य पता था कि कहाँ दीवार से सर टकराना व्यर्थ है.
संतावन ने अपने चेले को बैरंग आते देखा तो उसकी आँखों में सुर्ख डोरे उभर आए. भले ही वह नकारा, आवारा था पर उसके अन्दर अभी भी अपने पुराने रुतबे का जोश था.
"भैया, हमने बहुत समझाया पर दरोगा भी तो जात का ठाकुर ही है, एकदम नहीं सुन रहा," हलके बोला. उसने अपनी शिकायत में भी संतावन के जातीय गर्व को सहला दिया था.
"अच्छा तो जे भी बुंदेला हैं?"
अचानक ही संतावन के मन में दरोगे के प्रति स्नेह उमड़ आया. मानो अपना ही छोटा भाई शैतानी कर रहा हो और कहना मान नहीं रहा हो. संतावन अपनी गद्दी छोड़ उठ खड़ा हुआ. बहकते क़दमों से वह गुड्डू सिंह के पास पहुंचा.
"पिए हो का बे?" दरोगा ने भौहें उठा कर पूछा. उसे स्वयं भी इसी क्षण का इंतज़ार था.
"ले ली थी थोड़ी," संतावन मुस्कुरा दिया.
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बुंदेलखंड बवाल
Humorबुंदेलखंड भारत का वह हिस्सा है जहाँ डार्क ह्यूमर स्वतः परस्पर पैदा होता रहता है. यह कहानी है इस प्रान्त में इसी प्रकार स्वतः उपजी कुछ बेवकूफियों की और कुछ समझदारियों की.