शायद ग़लती मेरी ही थी,
मैं ख़ुद को ख़ास समझ बैठा था।उम्मीदें चोट पहुँचती है ऐसा मैंने सुना था,
पर सुनकर भी मैंने अनसुना किया था।शायद पहले ही समझ जाता तो अच्छा होता,
ना आज मेरा वक़्त मुझसे इस तरह ख़फ़ा होता।पहले हँसा मैं भी करता था,
अब बस मुस्कुरा दिया करता हूँ।ग़म बहुत है अंदर,
लेकिन सब छुपा दिया करता हूँ।अब क्या लिखूँ मैं?
ज़्यादा लिखू तो अश्रु बह आते हैं,
भावनाओं की व्यथा शब्द कहाँ कह पाते हैं।
आप पढ़ रहे हैं
MERAKI
Poetryमेरे द्वारा रचित हिंदी कविताओं और उद्धरणों का संग्रह। मुझे आशा है आप इन्हें पढ़ने का आनंद लेंगे। A collection of my self-written Hindi poems and quotes. I hope you enjoy reading them.